नई दिल्ली: देश के सर्वोच्च न्यायालय ने 29 जून को कहा कि उनका इरादा बीसीसीआई की स्वतंत्रता में दखल देने की नहीं है, बल्कि वह सिर्फ यह चाहता है कि वह इस तरीके से कार्य करे जिस से देश में खेल को बढ़ावा मिले. अदालत ने यह साफ़ किया है कि वह नेताओं के बीसीसीआई के कामकाज में हिस्सा लेने के विरोध में नहीं है.
साथ कोर्ट ने कहा कि वह जानना चाहती है कि देश की उच्च क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) ने अपने एकाउंटेंट से राज्य क्रिकेट संघों को दिए जा रहे पैसे का ऑडिट करने को कहा है या नहीं?
कोर्ट ने बीसीसीसीआई और उसके सदस्य संघों द्वारा लोढ़ा समिति की कुछ सिफारिशों को लागू करने के खिलाफ की गई अपील पर अपना फैसला सुरक्षित रखा है.
बीसीसीआई लोढ़ा समिति द्वारा एक राज्य एक वोट, अधिकारियों के कार्यकाल को सीमित करने और बीसीसीआई बोर्ड में नियंत्रक और ऑडिटर (सीएजी) के सदस्य शामिल करने की सिफारिशों के खिलाफ है.
कोर्ट के मुख्य जज टी.एस ठाकुर और फकीर मोहम्मद इब्राहिम कलीफुल्ला ने सुनवाई के दौरान कहा “हम बीसीसीआई के फैसले की समीक्षा नहीं कर रहे हैं. जैसे, अगर वह टीम का चयन करते हैं तो उसमें तेज गेंदबाज और स्पिनर होना चाहिए या नहीं, हम इसमें दखल नहीं दे सकते”
बीसीसीआई ने जवाब देते हुए कोर्ट में कहा कि उसे किस तरह अपना कामकाज करना चाहिए, इसको लेकर कोई उसे आर्डर नहीं दे सकता.
बीसीसीआई ने कहा कि अगर अदालत बोर्ड की साख, संविधान, सदस्यता और सदस्यों की योग्यता में दखल देती है तो यही बात उसे देश के 64 राष्ट्रीय खेल संघों पर भी लागू करनी चाहिए.
बीसीसीआई के वकील के.के. वेणुगोपाल ने कोर्ट में कहा “अगर कोई नौकरशाह या राजनेता नियमों के मुताबिक चुन कर आता है, तो इसमें कोई रोक-टोक नहीं कर सकता”
बीसीसीआई के जवाब पर कोर्ट ने कहा “नेता अपनी व्यक्तिगत क्षमता के दम पर बोर्ड में हो सकते हैं”.
बीसीसीआई के वकील ने कहा कि देश के सबसे बड़े क्रिकेट बोर्ड को अनुभवी और श्रेष्ठ लोगों की जरूरत है.
कोर्ट ने बीसीसीआई को कड़े शब्दों में कहा कि उसके राज्य संघों को उन्हें दिए गए पैसों के उपयोग का ब्यौरा देना होगा.
राज्य संघों से पैसों के उपयोग को लेकर सारी जानकारी देने को पर बीसीसीआई वकील ने कोर्ट में कहा कि “आपको इससे पहले इसकी जरूरत क्यों नहीं महसूस हुई?”
बीसीसीआई वकील ने कोर्ट को बताया कि पैसों के गलत उपयोग को रोकने के लिए बीसीसीआई ने आगे फंड देना बंद कर दिया है.
जिसके बाद कोर्ट ने बीसीसीआई से पूछा कि “आपने खेल के लिए दी जा रही मदद क्यों बंद कर दी? क्योंकि, कुछ भ्रष्ट लोगो ने पैसों का गलत प्रयोग किया है? मदद रोकना समस्या का हल नहीं है”
कोर्ट ने बीसीसीआई से पूछा कि “क्या आपने अपने एकाउंटेंट से राज्य संघों को बीसीसीआई द्वारा दिए जा रहे फंड को ऑडिट करने को कहा है?”
वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम ने इस वाक्य पर अपनी प्रतिक्रिया रखते हुए एक घटना का जिक्र करते हुए कहा कि “एक राज्य क्रिकेट संघ ने ड्राइवर, ड्राइवर की बेटी और उसके अन्य परिवार वालों को संघ का सदस्य बताया है. उन्होंने कहा कि एक बार जब यह बता दिया गया है कि बीसीसीआई सार्वजनिक कार्यो का पालन कर रही है, ऐसे में उसे नियमों के मुताबिक चलना चाहिए और अपने काम में पारदर्शिता रखनी चाहिए”.
बिहार क्रिकेट संघ की वरिष्ठ वकील नलिनी चिदम्बरम ने कहा कि “एक तरफ बीसीसीआई ने कोर्ट को बताया है कि वह अपने काम के तरीकों में सुधार कर रही है, वहीं इसके अध्यक्ष अनुराग ठाकुर ने कहा है कि अगर लोढ़ा समिति की सिफारिशों को लागू कर दिया गया तो वह बीसीसीआई को 20 साल पीछे ले जाएगी”
नलिनी चिदम्बरम ने कहा कि अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ चार्जशीट दाखिल हो जाती है तो वह बीसीसीआई में किसी पद पर नहीं बैठ सकता. अगर बोर्ड अधिकारी के खिलाफ चार्जशीट दाखिल होती है तो यह गंभीर मुद्दा है. नलिनी, ठाकुर के खिलाफ धर्मशाला क्रिकेट स्टेडियम मामले में दायर की गई चार्जशीट के विषय में यह तर्क दे रही थीं.