साल 1988 की बात है, जब शारदाश्राम विद्या मंदिर और सेंट जेवियर के बीच हैरिस शिल्ड टूर्नामेंट का मैच चल रहा था. इसी मैच में सचिन और कांबली ने रिकॉर्ड 664 रनों की साझेदारी की थी.
उस मैच में शारदाश्राम की टीम में 13 वर्षीय अमोल मुजुमदार भी थे. सचिन और कांबली की साझेदारी की वजह से, मुजुमदार को बल्लेबाजी करने का मौका ही नहीं मिला, और ये तब शुरू हुआ सिलसिला, मुजूमदार का क्रिकेट करियर खत्म होने तक चला.
मूजूमदार ने अपना पहला प्रथम श्रेणी मैच 1993 में खेला, और पहले ही मैच में 260 रन बनाए. और ये प्रथम श्रेणी क्रिकेट में पहला मैच खेल रहे खिलाड़ी का सर्वाधिक स्कोर है.
इस पारी के बाद उन्हें सब अगला सचिन बता रहे थे, और उनकी तकनीक द्रविड की तरह थी.
उस समय भारतीय युवा टीम इंग्लैंड दौरे पर गयी थी, जिस टीम में द्रविड और गांगुली भी थे. मूजूमदार ने उस सीरीज में अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन द्रविड से वे हार गये.
फिर दीलीप ट्रॉफी में लक्ष्मण ने 395 रन बनाए, तो द्रविड ने 353 रन बनाए. मूजूमदार ने 333 रन बनाए तो गांगुली ने 308 रन बनाए.
फिर इंग्लैंड दौरे के लिए टीम चुनी गयी, और उसमे द्रविड और गांगुली को मौका मिला. और आगें वे दोनों बडे खिलाड़ी बन गये.
मूजूमदार ने लगातार अच्छा प्रदर्शन किया रणजी ट्रॉफी में. 1993 से लेकर 2003 तक, मूजूमदार ने 90 मैचों में 50 की औसत से, 6051 रन बनाए. उस समय उनके साथी मुंबई के खिलाड़ियों को भी भारत के लिए खेलने का मौका मिला, लेकिन मूजूमदार को नहीं. वसीम जाफर, साईराज बहुतुले, और निलेश कुलकर्णी को मौका मिला.
उस समय भारतीय टीम में तीसरे नंबर पर द्रविड, चौथे नंबर पर सचिन, और पांचवें नंबर पर लक्ष्मण खेलते थे. और छठे नंबर पर गांगुली को मौका मिलता था. और इस वजह से मुजूमदार को कभी भी भारतीय टीम में मौका नहीं मिला.
मुजूमदार 2009 के बाद से आसाम के लिए खेले, और रिटायर आंध्रप्रदेश के लिए खेलते हुए, 2012/2013 में हुए.
प्रथम श्रेणी क्रिकेट में उनके नाम 9200 से ज्यादा रन है, और वे एक शानदार बल्लेबाज थे. लेकिन उनको भारतीय टीम में जगह ना मिलने की एक ही वजह थी, जो की भारतीय टीम में उनके समय महान बल्लेबाज थे.