ये हैं हमारे देश के टॉप 5 अनलकी क्रिकेटर्स, सूची में सचिन तेंदुलकर के खास दोस्त का नाम भी हैं शामिल 1

कहा जाता है, कि भारत में क्रिकेट खेल ही नहीं बल्कि धर्म माना जाता हैं. एक ऐसा धर्म जहा क्रिकेटर को भगवान जबकि प्रत्येक जीत को त्यौहार की तरह मनाया जाता हैं. टीम की हार भी क्रिकेट के फैन्स के लिए एक बेहद दर्द देती हैं. इसमें कोई शक नहीं है, कि हर बच्चे को भारतीय जर्सी पहनने की आकांक्षा होती हैं, हालाँकि उनमे से कुछ ही इस  मुकाम को हासिल करते हैं.

आज इस लेख में हम उन अनलकी खिलाड़ियों के बारे में जानेगे, जिन्होंने घरेलु क्रिकेट में कड़ी मेहनत करके शानदार प्रदर्शन किया, लेकिन भारतीय टीम में जगह बनाने में नाकाम रहे:-

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5) अनिल गुरव

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अनिल गुरव अपार प्रतिभा के धनी रहे. यह तथ्य सच है, कि सचिन तेंदुलकर के बचपन के कोच रमाकांत आचरेकर ने अपने सबसे 2 प्रतिभाशाली शिष्य सचिन तेंदुलकर और विनोद काम्बली को अनिल गुरव के स्ट्रोकप्ले देखने और सिखने को कहा था.

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अनिल को मुंबई का विवियन रिचर्ड्स भी कहा जाता था और यह भी लगने लगा था, कि वह जल्द ही भारत के विवियन रिचर्ड्स बन सकते हैं. हालाँकि मुंबई U-19 टीम को ऐसा नहीं लगा और अपने सपने को हासिल न कर पाने का कारण और भी दुखद रहा.

अनिल के भाई अजित ने एक गलत रास्ता चुना और अंडरवर्ल्ड में शामिल हो गये. जिसका परिणाम यह हुआ कि पुलिस बार-बार अनिल और उनकी माँ को अजित के ठिकाने का पता लगाने का इस्तेमाल किया. अजित इस स्थिति का सामना करने में अस्मर्थ रहे और शराब के आदि हो गए, जिसके बाद एक होनहार क्रिकेट खिलाड़ी के करियर का दुखद अंत हुआ.


4) ध्रुव पांडोव

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पांडोव घरेलू सर्किट में अपने अविश्वसनीय कारनामों के कारण  बेहद चर्चित हुए. ध्रुव का क्रिकेट करियर पंजाब अंडर-15 और अंडर-17 के साथ जुड़ने के बाद सबसे पहले सुर्खियो में आया.

पांडोव ने 13 वर्ष की उम्र में प्रथम श्रेणी क्रिकेट में पदार्पण किया और वर्ष 1987-88 में विजय ट्राफी में पांडोव ने जम्मू कश्मीर अंडर-17 के विरुद्ध 159 और दिल्ली अंडर-17 के विरुद्ध 51 रन बनायें. पांडोव ने अपने सबसे पहले मैच में हिमांचल प्रदेश के विरुद्ध 94 रन बनायें. वर्ष 1987-88 में विजय मर्चेंट ट्राफी में सेंट्रल ज़ोन अंडर-15s के विरुद्ध पांडोव ने सेमीफाइनल में 206 की पारी खेली. जिसके बाद फाइनल मैच में ईस्ट ज़ोन अंडर-15 के विरुद्ध पांडोव ने 117 और 42 रनों की अहम पारी खेली. अपने तीसरे प्रथम श्रेणी मैच में पांडोव ने जम्मू और कश्मीर के विरुद्ध श्रीनगर में खेले गए मैच में 137 रन बनायें और पांडोव भारत और दुनिया के सबसे कम में उम्र में प्रथम श्रेणी क्रिकेट में शतक लगाने वाले खिलाड़ी बने. पांडोव ने प्रथम श्रेणी क्रिकेट में 14 वर्ष और 294 दिनों में शतक लगाया.

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वर्ष 1990-91 में पांडोव ने कूच बिहार ट्रॉफी में पंजाब अंडर-19 का प्रतिनिधित्व किया और लगातार 2 शतक लगाये. पांडोव ने लिस्ट ए क्रिकेट में अपने पदार्पण मैच में 64 रनों की पारी खेली. पांडोव ने 17 वर्ष 341 दिनों की उम्र में रणजी ट्राफी में 100 का आंकड़ा छुआ. लेकिन दुर्भाग्य से यह मैच उनका अंतिम रणजी मैच साबित हुआ. वर्ष 1992 में देवधर ट्रॉफी क्वार्टरफाइनल के बाद घर लौटते हुए पांडोव की कार दुर्घटना में मौत हुई.

3) येरे गौड़

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रेलवे और कर्णाटक के पूर्व कप्तान येरे गौड़ घरेलु क्रिकेट के सबसे अच्छे खिलाड़ियों में शामिल रहे.

येरे गौड़ ने जब खेल से अलविदा कहा तब भारत के पूर्व तेज गेंदबाज़ जवागल श्रीनाथ ने येरे गौड़ की तारीफ करते हुए कहा था कि “येरे रेलवे टीम के राहुल द्रविड़ थे”.

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येरे ने 15 वर्षो के करियर के दौरान 134 प्रथम श्रेणी मैचो में 45.53 की औसत से 7650 रन बनायें. येरे ने अपने करियर के दौरान 16 शतक और 39 अर्धशतक भी लगायें. वर्ष 2001-02 और 2004-05 में येरे रणजी विजेता टीम रेलवे के सदस्य रहे. रेलवे के सदस्य रहते हुए येरे ने 3 बार ईरानी ट्राफी खिताब भी जीता. इसके आलावा येरे दुलीप ट्राफी और रणजी ट्राफी एकदिवसीय प्रतियोगिता विजेता टीम के सदस्य भी रहे. इनती जब उपलब्धिया उन्हें राष्ट्रीय टीम में जगह दिलाने में काफी नहीं रही.

2) पद्माकर शिवलकर

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पद्माकर शिवलकर ने अपने प्रथम श्रेणी करियर के 19.69 की औसत से 589 विकेट हासिल कियें, इस दौरान उनकी इकोनॉमिक दर 2 करीब रही. पद्माकर शिवलकर यक़ीनन भारत के सबसे महानतम स्पिनर है, जिसे भारत के लिए खेलने का मौका नहीं मिला.

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पद्माकर शिवलकर में काबिलियत थी कि वह एक क्षेत्र में लगातार गेंदबाजी कर सकते थे, जोकि उन्हें एक खतरनाक गेंदबाज बनाती थी. लेकिन पद्माकर शिवलकर ने उस दौरान में क्रिकेट खेला जिस दौर में भारतीय टीम में गुणवत्ता स्पिनरों के साथ भरी हुई थी. शिवलकर का भारत की टीम से खेलने का सपना कभी पूरा नहीं हो पाया.

1) अमोल मजुमदार

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अनोल मजुमदार एक ऐसे बल्लेबाज़ थे जो गलत युग में पैदा हुए थे. अनोल मजुमदार ने उस दौर में क्रिकेट खेला जिस दौर में सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली, वीवीएस लक्ष्मण और राहुल द्रविड़ ने अपना दबदबा कायम किया हुआ था.

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अमोल मजुमदार ने अपने रणजी ट्राफी पदार्पण मैच में शानदार 260 रनों की पारी खेली और इसके बाद वह देश के प्रमुख घरेलु टुर्नामेंट के सबसे महानतम क्रिकेटर बने. अनोल मजुमदार ने प्रथम श्रेणी क्रिकेट में 47.47 की औसत से 10,208 रन बनायें, जिस दौरान उन्होंने 25 शतक लगाये, लेकिन फिर भी राष्ट्रीय चयनकर्ताओ पर छाप छोड़ने में नाकाम रहे.