रियो ओलिम्पिक में आपने भारत के दोनों पदक विजेताओं को लेकर कई बार इस तरह के नारे हर न्यूज़ चैनल, अख़बार या सोशल मीडिया में सुने होंगें कि “भारत की बेटी”, “बेटी बचाओ पदक लाओ” और “देश की 2 बेटियां”.
यह भी पढ़े: भारत कों मिला नया गेंदबाजी कोच
लेकिन क्या 3-4 महिला खिलाड़ियों को छोड़ दिया जाये तो बाकी क्या भारत की बेटियां नहीं हैं? जिन्होंने भी उतनी ही मेहनत करी और अपनी पूरी कोशिश की लेकिन पदक के करीब नहीं पहुंच सकी.
भारत की ओर से दीपा करमाकर, दीपिका कुमारी, ओ पी जैशा और अदिति अशोक जैसे खिलाड़ियों ने भी अच्छा प्रदर्शन किया. लेकिन उनकी इतनी प्रशंसा नहीं की जा रही जितनी सिन्धु और साक्षी की हो रही है, क्या केवल पदक ही यह तय करेगा की कौन भारत की बेटी है और कौन नहीं?
यह भी पढ़े: WWE की सबसे बड़ी खबर: लेसनर के खुनी खेल की वजह से रैंडी ओरटन कों लगे 10 टाँके
पदक जीतने पर खुश होने के अधिकार सभी देशवासियों को है, लेकिन क्या इतना ज्यादा शोर मचाना केवल इसलिए ठीक है, क्योंकि सिर्फ दो महिलाएं ही पदक जीत कर लायी है. अगर यह दोनों पदक किसी पुरुष खिलाड़ी ने जीते होते तो शायद सरकार और आम लोग इतना खुल कर अपनी ख़ुशी का इज़हार नही करते जितना अभी हो रहा है.
जब बीजिंग में 2008 में अभिनव बिंद्रा ने देश के लिए एकलौता व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीत कर इतिहास रचा था तब किसी भी न्यूज़ चैनल या अखबार में ऐसा नहीं दिखाया गया था की अभिनव “देश का बेटा” स्वर्ण पदक जीत कर लाया है. तो फिर क्यों सिन्धु का रजत पदक इतना ख़ास बनाया जा रहा है? सिन्धु और बिंद्रा दोनों ने भारत का नाम रोशन किया तो इसमें फर्क क्या है?
यह भी पढ़े: योगेश्वर को हराने वाले, रेसलर की हुई बेज्जती
महिलाएं पुरुषों से बेहतर है ऐसा कह कर, हम वास्तव में महिलाओं के पदक का मज़ाक बना रहे है. क्या केवल इसलिए महिलाएं पुरुषों से बेहतर करार दी जा सकती है क्योंकि कोई भी पुरुष खिलाड़ी पदक जीतने में नाकाम रहा. अगर कोई पुरुष पदक जीत जाता तो क्या इन दो पदक विजेताओं की मेहनत का महत्व कम हो जाता?
महिलाओं को इतना श्रेय देना भी ठीक नहीं है, महिलाओं की खेल में रूचि बढ़ाने के लिए हमे केवल उन्हें पुरुषों की तरह ही सम्मान देना चाहिए.
यह भी पढ़े: धोनी के प्रसंशको के लिए बुरी खबर: भारतीय कप्तान पर लगा गम्भीर आरोप
सिन्धु और साक्षी दोनों ने लाजवाब प्रदर्शन किया और वो इस जश्न और तोहफों के हक़दार भी है. लेकिन हमने उन्हें भारत में महिलाओं को खेल के प्रति जागरूक करने के लिए नहीं भेजा था बल्कि उन्हें एक खिलाड़ी के तौर पर भेजा गया था भारत को पदक दिलाने के लिए. और उन्हें इसी तरह ही देखने और दर्शाने की भी ज़रूरत है. सिन्धु और साक्षी को हमे दो पदक विजेताओं के तौर पर याद रखने की ज़रूरत है ना कि किसी आन्दोलन के पोस्टर की तस्वीरों के तौर पर.
हम यहाँ इन दोनों खिलाड़ियों की उपलब्धि पर सवाल नहीं उठाना चाहते, हम तो बस आपको ये बतलाना चाहते है कि हमे इस बात पर गर्व होना चाहिए की ये दोनों खिलाड़ी भारत के लिए पदक लेकर आये है ना कि इस बात से आश्चर्यचकित होना चाहिए कि महिला खिलाड़ी ने पदक जीता और पुरुष खिलाड़ी नाकाम रहे.
यह भी पढ़े: मासुम बच्ची कों बचाने में भारतीय फूटबालर ने दी जान,