टेस्ट क्रिकेट में कई बार ऐसे मौके भी आते हैं जब किसी टीम के लिए मैच जीतने से ज़्यादा महत्वपूर्ण उसे ड्रॉ तक ले जाना होता है. एक बड़े लक्ष्य का पीछा करते हुए जब किसी किसी बल्लेबाज़ी क्रम का सामना दुनिया के बेहतरीन बॉलिंग अटैक से हो तो बल्लेबाज़ी कर रही टीम के लिए मैच बचाना ज़्यादा अहम हो जाता है.
भारतीय टीम के लिहाज़ से इस बारे में बात करें तो उनके लिए भी कई मौके ऐसे आए जब मैच को जीतने के मुक़ाबले ड्रॉ को टीम के बल्लेबाज़ों ने ज़्यादा प्राथमिकता दी. इस लेख में हम बात करेंगे 3 ऐसे ही वाक़यों के बारे में जब भारतीय टीम ने असंभव सी स्थिति में बेहतरीन क्रिकेट खेल कर मैच को ड्रॉ कराया.
भारत बनाम इंग्लैंड, मैनचेस्टर टेस्ट (1990)
मैनचेस्टर के ओल्ड-ट्रेफ़र्ड पर खेले गए सीरीज़ के दूसरे टेस्ट में भी इंग्लिश टीम शुरुआत से ही हावी नज़र आ रही थी. टॉस जीत कर इंग्लिश कप्तान माइक अथर्टन ने पहले बल्लेबाज़ी का फ़ैसला किया. अथर्टन, गूच और रॉबिन स्मिथ की शानदार शतकीय पारियों के दम पर इंग्लैंड ने पहली पारी में 519 रन का विशाल स्कोर खड़ा किया.
जवाब में बल्लेबाज़ी करने उतरी भारतीय टीम पहली पारी में 432 रन पर ऑलआउट हो गई. इसके बाद इंग्लैंड ने दूसरी पारी में भी शानदार बल्लेबाज़ी करते हुए 4 विकेट पर 320 रन बना कर पारी घोषित कर दी. चौथी पारी में 408 रन के बड़े लक्ष्य का पीछा करने उतरी भारतीय टीम खराब शुरुआत के बाद 183 रन पर 6 विकेट गंवा कर संकट में नज़र आ रही थी.
लेकिन आखिर में मनोज प्रभाकर और युवा बल्लेबाज़ सचिन तेंदुलकर की 160 रन की शानदार साझेदारी के दम पर भारतीय टीम एक हारे हुए मैच को ड्रॉ कराने में कामयाब रही.