भारत के दीवार के नाम से प्रसिद्द रहे राहुल द्रविड़ को क्रिकेट जगत का सबसे सभ्य खिलाड़ी भी कहा जाता है. उन्होंने भारत के लिए न जाने कितनी उपयोगी पारियां खेली. वह अपना काम बड़ी ही शालीनता के साथ करते रहे. आज भी वह भारतीय क्रिकेट के लिए अहम योगदान दे रहे हैं. वह भारत की अगली पीढ़ी को संवारने का जिम्मा संभाले हुए हैं. वह अंडर 19 टीम के कोच हैं.
राहुल द्रविड़ कई मायनों में महान खिलाड़ी हैं. आज हम, जानेगे कि वो कौन से ऐसे 5 गुण हैं जो इस दिग्गज से सीख अपनी जिन्दगी में यदि उतार ली जाए तो जिन्दगी एक बेहतरीन मुकाम तय करेगी यह निश्चित है.
5. धैर्य-
यदि किसी व्यक्ति के जीवन में धैर्य नही है तो वह किसी भी लक्ष्य को नहीं पा सकता. क्योंकि जल्दबाजी में उठाए गये गलत कदम हमेशा ही हानिकारक साबित होते हैं.
द्रविण जब टेस्ट में बल्लेबाजी करते थे तो वह एक रन बनाने से पहले प्रतीक्षा करते थे. द्रविड़ ने अपने 16 साल के करियर में कभी भी जल्दबाजी में कोई भी मैच नही खेला. उन्होंने हमेशा प्रतीक्षा की खराब गेंदों की. जिसमे उन्होंने लम्बे शॉट खेले. इसी कारण उनके नाम 12,000 से अधिक रन हैं.
4. काम के प्रति समर्पण-
अक्सर यह देखा गया है कि जब चीजें किसी भी व्यक्ति के साथ सही नही जा रही होती हैं तो लोग उस राह को छोड़ कुछ नया करने की कोशिश करते हैं. मगर वह इसमें कई बार या बहुत बार सफल नही होते हैं. ठीक ऐसा ही खिलाड़ियों के साथ होता है जब वह बुरी फॉर्म से जूझ रहे होते हैं तो वह कुछ नया करने की कोशिश करते हैं. यही उन्हें टीम से बाहर करने का मार्ग बनता है.
द्रविड़ ने भी अपने लम्बे करियर के दौरान कई बार बुरा दौर देखा. मगर उन्होंने कुछ नया करने की कोशिश नही की बल्कि उन्होंने अपनी तकनीक में ही खामियों को सुधारा. इस कारण उन्हें सफलता मिली.
3. अपनाने की क्षमता-
राहुल द्रविड़ जब शुरुवाती दिनों में थे तब वह टेस्ट खिलाड़ी के तौर पर पहचाने जा रहे थे. वह एकदिवसीय क्रिकेट के लिए फिट नही बताए जा रहे थे. मगर तीन साल बाद अपने ऊपर काम करने के बाद जब उन्हे 1998-99 में न्यूज़ीलैण्ड के खिलाफ मौका मिला तब उन्होंने अपनी प्रतिभा का परिचय दिया. इसके बाद 1999 वर्ल्ड कप के दौरान वह सबसे ज्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाज बन कर उभरे.
2. टीमवर्क-
द्रविड़ को सही मायनों में एक टीम के लिए खेलने वाला खिलाड़ी कहा जाता है. उन्होंने क्रिकेट के दौरान जिस रूप में टीम को जरूरत हुई उन्होंने वह रोल निभाया. वह गांगुली की कप्तानी के दौरान कीपर रहे. वह कप्तान बने. उन्होंने टीम के लिए सलामी बल्लेबाजी की. इसी तरह उनसे यह सीखा जा सकता है कि आपने दल को समस्या से निकालना आना चाहिए.
1.अपनी क्षमता को पहचानना-
कई ऐसे खिलाड़ी होते हैं, जो अपने खेल से न्याय कर रहे होते हैं यानी कि वह अपने करियर की चरम पर होतें हैं, लेकिन उन्हे लगता है कि उन्हे जितना खेल को देना था वह दे चुके हैं तब वह खेल से सन्यास ले लेते हैं. जबकि कुछ खिलाड़ी ऐसे होते हैं जो तब तक संन्यास नही लेते जब तक चयनकर्ता खुद उन्हें बाहर करने के लिए नही सोचते.
द्रविड़ भी उन खिलाड़ियों में रहे जिन्होंने समय रहते ही संन्यास ले लिया. उन्हें जब लगा कि अब वह अपना 100 प्रतिशत नही दे पा रहे हैं तो उन्होंने चयनकर्ताओं को स्पष्ट तौर पर कह दिया.
इससे हमें यह सीख मिलती है कि हम किसी जगह पर तब तक रहे जब तक कि किसी को हमारी उपयोगिता है. जब ऐसा लगे कि अब यहाँ रुकना दोनों ही पक्षों का समय नष्ट करना है तो वहां से बिना किसी ड्रामा के हट जाना चाहिए.