भारत और पाकिस्तान के मैच की तरह ही ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बीच होने वाली एशेज सीरीज में भी दर्शको को काफी रोमांच और भरपूर मनोरंजन देखने को मिलता है.
इस साल 23 नवम्बर से एक बार फिर एशेज सीरीज का आगाज होने जा रहा है और आज हम आपकों अपने इस खास लेख में एशेज सीरीज के इतिहास के बारे में ही बताएँगे.
यह है एशेज सीरीज के नाम पड़ने का इतिहास
135 साल पहले अगस्त 1882 में ऑस्ट्रेलिया ने पहली बार इंग्लैंड को इंग्लैंड की धरती में हराया था. इस पर लंदन से निकलने वाले अखबार स्पोर्टिंग टाइम्स के जर्नलिस रेगीनाल्ड शिर्ले ब्रूक्स ने इंग्लिश क्रिकेट को श्रद्धांजलि दे डाली थी.
शिर्ले ब्रूक्स ने अपने एक लेख पर इस हार को लेकर लिखा था, ओवल पर 29 अगस्त 1882 को इंग्लिश क्रिकेट मर गया. अब इसे दफनाया जायेगा और अवशेष (एशेज) को ऑस्ट्रेलिया ले जाया जायेगा. तंज के तौर पर दी गई व लिखी गई यह श्रद्धांजलि उस वक्त इंग्लैंड में काफी चर्चित हो गई थी.
राख की वजह से पड़ा एशेज नाम
दिसम्बर 1882 में इंग्लैंड की टीम ऑस्ट्रेलिया दौरे पर गई और तब इंग्लैंड के कप्तान इवो ब्लिघ ने कहा, कि “वो अब एशेज वापस लायेंगे.” उस दौरे पर इंग्लैंड को पहले टेस्ट में हार मिली, लेकिन अगले दो टेस्ट मैच इंग्लैंड जीत गया और इंग्लैंड ने सीरीज पर कब्ज़ा जमा लिया.
मेलबर्न टेस्ट के बाद कुछ महिलाओं ने लकड़ी की एक गेंद जलाकर उसकी राख एक ट्रॉफी में रखकर इंग्लैंड के कप्तान ब्लिघ को थमा दी और कहा, ले जाओ एशेज वापस और यही से एशेज सीरीज का आगाज हो गया.
हालाँकि, बाद में यह दावा भी किया गया कि ट्रॉफी में बॉल नहीं बल्कि बेल्स (गिल्लियों) की राख थी. हालाँकि कुछ ने यह भी कहा कि ये कपड़े की राख थी. ट्रॉफी के अंदर किस चीज की राख थी इस पर विवाद आज भी जारी है. बहरहाल इस राख के लिए 135 साल से मुकाबला जारी है.
आज भी लॉर्ड्स के एमसीसी म्यूजियम में है ट्रॉफी पर रखी राख
आपको बता दे, कि ऑस्ट्रेलिया की महिलाओं ने जो ट्रॉफी में राख इंग्लैंड के कप्तान ब्लिघ को दी थी. वह एशेज ट्रॉफी और उसमे भरी राख आज भी लॉर्ड्स के एमसीसी म्यूजियम में रखी हुई है.
मात्र 15 सेंटीमीटर है एशेज ट्रॉफी की लम्बाई
फिलहाल जो भी टीम एशेज सीरीज जीतती है. उस टीम को लॉर्ड्स के एमसीसी म्यूजियम में रखी ट्रॉफी की डुप्लीकेट ट्रॉफी थमाई जाती है. ट्रॉफी की ऊंचाई महज 15 सेंटीमीटर है और यह दुनिया की सबसे छोटी ट्रॉफी मानी जाती है.
वीडियो ऑफ़ द डे