क्रिकेट जैसे फार्मेट में वैसे तो 11 खिलाड़ियों के संपूर्ण समर्पण की जरुरत होती है, जब-जब कोई टीम एकजुट होकर खेली है तब- तब उसने जीत हासिल की है. लेकिन टीम में विकेटकीपर की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है.
विकेटकीपर अपनी मानसिक स्थिति का सही से उपयोग कर टीम को जीत के मुहाने पर ले जाने का काम करता है. विकेटकीपर का काम बहुत ही कठिन होता है जिसका वह संपूर्ण रूप से निर्वाहन करता है.
लेकिन पिछले कुछ सालों में विकेटकीपर की भूमिका में बदलाव आया है, आज कल विकेटकीपर के अन्दर सब कुछ करने की कला मौजूद है, जिसके बलबूते उसने कई बार आश्चर्यजनक प्रदर्शन कर टीम को जीत दिलाई है.
यह प्रवृत्ति ऑस्ट्रेलिया के एडम गिलक्रिस्ट की उपलब्धियों के साथ शुरू हुई, जो ऑस्ट्रेलिया के लिए सबसे खतरनाक बल्लेबाजों में से एक थे. जो खेल के सभी प्रारूपों में समान था और स्टंप के पीछे बेहतरीन कलाकारों में से एक था। आजकल हर टीम विकेट-कीपर को विशेषज्ञ बल्लेबाजों की तरह प्रदर्शन करने की उम्मीद करती है.
आपको ये जानकार आश्चर्य होगा कभी कभी बल्लेबाजों की साझेदारी तोड़ने के लिए या गेंदबाजों को आराम देने के लिए विकेटकीपर ने अपने पैड उतार दिए और गेंदबाजी के लिए बल्लेबाज के सामने आ गए और अपनी प्रतिभा और कौशल के दम पर विकेट भी निकाल के टीम को दिया.
ऐसे ही तीन विकेटकीपर, जिन्होंने अपनी टीम को ब्रेक थ्रू दिलाया, जरुरत के समय गेंदबाजी करायी और विकेट भी निकाल के दिया.
वो विकेटकीपर जिन्होंने विकेट निकाले
तदेंदा ताइबू
ज़िम्बाब्वे के अत्यधिक प्रतिभाशाली विकेटकीपर-बल्लेबाज, तातेंडा ताइबू को टेस्ट क्रिकेट के इतिहास में सबसे कम उम्र के कप्तान के रूप में याद किया जाता है।20 साल और 358 दिनों की उम्र में, ताइबू ने 2004 में हरारे में श्रीलंका के खिलाफ जिम्बाब्वे का नेतृत्व किया था।
ताइबू ने 29 अप्रैल 2004 को हरारे में श्रीलंका के खिलाफ एक दिवसीय मैच में उपुल चंदाना और थिलिना कंदम्बी के विकेट लिए. और ये इनका एकदिवसीय मैचों में 42/2 विकेट रिकॉर्ड बन गया.
इसके बाद ही सप्ताह भर के ही भीतर ही इन्होने अपना टेस्ट मैच का विकेट भी सनथ जयसूर्या के रूप में ले लिया. ये मैच भी हरारे में ही 6 मई को खेला गया था. इन्होने जिम्बाब्वे के लिए 28 टेस्ट मैच और 150 वनडे मैच खेले जिनमें क्रमशा इन्होने 1546 और 3393 रन बनाये.