कहते है कि वक़्त खुद को दोहराता है. अब क्रिकेट के खेल को ही ले लीजिये एक टाइम था जब भारतीय टीम 90 के दशक में खेलती थी तो पूरी तरह से मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर पर ही निर्भर थी अगर सचिन चल गये तो टीम की जीत पक्की और अगर सचिन जल्दी आउट हो गये तो हम सभी जानते हैं.
आज भी भारतीय क्रिकेट में कुछ ऐसा ही हो रहा हैं. आज सचिन की भूमिका में भारतीय टेस्ट टीम के कप्तान विराट कोहली नज़र आते है. विराट चल गये तो ही टीम जीतेगी अन्यथा नहीं.
आंकड़े भी कुछ यही कहते है सन 2013 से भारतीय टीम ने लक्ष्य का पीछा करते हुए कुल 11 मुकाबले हारे है जिन में एक भी बार विराट कोहली या भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने 50 रन नहीं बनाये है.
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अब मौजूदा वनडे श्रृंखला को ही ले लो जहा विराट कोहली ने टीम के लिए 45 रन बनाये तो कप्तान धोनी मात्र 11 रनों का ही योगदान दे सके और टीम मुकाबला 19 रनों से हार गयी और दिल्ली वनडे में भी कुछ ऐसा ही हुआ जहा विराट ने केवल 9 और कप्तान ने 39 रनों का योगदान दिया और टीम 6 विकेट से मैच हार गयी.
बात सिर्फ इन दोनों मुकाबलों की नहीं है. अब ये भारतीय टीम की मानों परम्परा सी बना गयी है. विशेषतौर पर लक्ष्य का पीछा करते हुए ये दोनों फ्लॉप तो टीम भी फ्लॉप खासतौर पर विराट कोहली के फेल होने पर.
इस समय भारतीय उपकप्तान न्यूजीलैंड के खिलाफ हो रही वनडे श्रृंखला में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी हैं उन्होंने अभी तक खेली चार पारियों में सर्वाधिक 293 रन बनाये है. जबकि बाकी खिलाड़ियों में रोहित शर्मा, अजिंक्य रहाणे, मनीष पांडे और केदार जाधव ने मिलकर अभी तक 303 रन ही बनाये है.
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इस साल ट्वेंटी-20 वर्ल्ड कप के दौरान भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला. टीम ने सेमीफाइनल तक का सफ़र तय किया था. सेमीफाइनल जैसे अहम मुकाबले में भी टीम के बाकी पांच बल्लेबाज उतने रन नहीं बना पाए जितने अकेले कोहली ने बना दिए थे.
कल भी रांची एकदिवसीय मई भी ऐसा ही सब कुछ देखने को मिला. न्यूजीलैंड की टीम ने जिस तरह से भारत के विरुद्ध मैच जीता वह लाजवाब था. सीरीज अब दो-दो की बराबरी पर आ खाड़ी हुई हैं. क्रिकेट एक टीम गेम है और यह तब तक ख्त्म नहीं होता जब तक मैच की अंतिम गेंद ना डाल दी जाए. कल सभी के दिमाग में एक ही सवाल चल रहा था की विराट अगर आउट ना होते तो भारत के लिए मैच जीता जाते और 261 का लक्ष्य आसानी से पार हो जाता.
विराट ने कल 45 रन बनाये थे मात्र 51 गेंदों पर जिसमे 2 चोक्के और 1 छक्का शामिल था. कल कोहली तेज खेल रहे थे. इश सोढ़ी की गेंद पर जब कोहली आउट हुए तब टीम को 171 रन की और जरुरत थी 181 गेंदों में. उनके आउट होने के साथ ही कप्तान धोनी भी दबाव नही झेल पायें और सस्ते में ही चलते बने जिसके बाद कम अनुभवी मध्य्कर्म के बल्लेबाज भी टीम के लिए जीत के दरवाजे नहीं खोल पायें.
कई मर्तबा टीम के खिलाड़ी अपना विकेट अपनी बेफिजूल की गलतियों के कारण गवां बैठते है. कैसे कि दिल्ली वनडे मैच के बीच में देखा गया और फिर रांची मुकाबले में भी ऐसा ही देखा गया.
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जैसे कि टीम के सलामी बल्लेबाज रोहित शर्मा तो अभी तक वर्तमान में चल रही श्रृंखला में 20 का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाएं है और सभी मैचों में लगभग एक ही तरीकों से आउट होते दिखे है. हर एक गेंद गुड लेंथ गेंद को ऑफ़साइड ऑफ ऑफ स्टंप खेल कर आउट हो रहे है. रहाणे ने कल जरुर भारत के लिए 57 रनों की पारी खेली लेकिन अपना विकेट एक बेहद अच्छी गेंद पर पगबाधा आउट होकर गवां बैठे. धोनी भी एक गुड लेंथ बोल को ठीक तरह से नहीं पढ़ पाए और क्लीन बोल्ड हो गये. युवा मनीष पांडे ने भी अपने विकेट एक धीमी गति की गेंद पर मिड ऑन पर खेड़ फील्डर को तोहफ़े के तौर पर दे दिया. केदार जाधव भी एक ऐसी ही गेंद को नहीं पढ़ पाए और आउट हो कर चले गये. हार्दिक पंड्या भी सिक्स लगाने के चक्कर में अपने विकेट डीप में गवां बैठे, पंड्या पहले से ही ओवर में दो चोक्के जड़ चुके थे.
कीवी गेंदबाजों ने बढ़िया गेंदबाजी की लेकिन भारतीय खिलाड़ियों ने अपनी गलतियों के कारण ही अपने विकेट न्यूजीलैंड को दिवाली के तोहफ़े के रूप में दी है. कीवी बोलर्स ने भी सही अनुशासन के साथ गेंदबाज़ी की.
कप्तान धोनी ने भी स्वीकार किया की हम अपनी गलतियों को सुधारने के बजाये उन्हीं गलतियों को बार-बार दोहरा रहे है. साथ ही कप्तान धोनी ने कहा कि-
”क्रिकेट में क्या होना चाहिये और क्या नहीं ये सब बात नहीं करनी चाहिये.”
उन्होंने अपना यह बयान निचले क्रम पर बल्लेबाज़ी करने वाले बल्लेबाजों को देखते हुए कहा.
एम.एस के मानना है, कि
”हमारे निचले क्रम के खिलाड़ियों के पास ज्यादा इस तरह के करीबी मुकाबलों का कुछ ख़ासा अनुभव नहीं है और यह एक बेहतरीन वक़्त है इन नये खिलाड़ियों को मौक़ा देकर उनके अनुभव को बढ़ाने का.”
धोनी इस समय अपने आप को बैटिंग आर्डर में ऊपर प्रोमोट कर रहे है. पर कही ना कही यही चांस है कि धोनी अक्सार पटेल और मनीष पांड जैसे खिलाड़ियों में ज्यादा बल्लेबाजी करना का मौका दे ताकि वो भी कुछ रन बोर्ड पर लगा सके और किस तरह से दबाव में खेला जाता है उस बल्लेबाजी की कला को सिख सके. पर इसका मतलब यह नहीं है, कि धोनी फिर से अपने आप को नीचे बैटिंग आर्डर पर धकेले. टीम के सबसे अनुभवी बल्लेबाज रोहित शर्मा, अजिंक्य रहाणे जैसे खिलाड़ियों को भी घरेलू कंडीशन के कारण कुछ परेशानी नहीं होगी.
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इस समय भारतीय टीम के लिए सबसे बड़ी दिक्कत यह है, कि टीम पूरी तरह से एक दो बल्लेबाजों पर ही निर्भर है. टीम की बल्लेबाजी मनो ‘वन मेन शो’ बनकर रहे गयी है. वो है विराट कोहली. कोहली के आउट होने के बाद भी अगर जीत की कोई उम्मीद नज़र आती है या भारत जीत के नजदीक होती है तो उस समय भारतीय खिलाड़ी अपना विकेट खोकर टीम की और विराट की सारी मेहनत पर पानी फेर देते है. अब तो बाकि बल्लेबाज भी खुद को तभी सुरक्षित महसूस करते है अगर कोहली विकेट पर खेड़े रहे.
आज कल तो स्टेडियमस या टीवी पर मैच देख रहे लोग भी विराट कोहली या धोनी के आउट होने के बाद मैदान से चले जाते है या अपने-अपने टीवी चैनल्स बदल देते है, क्यूँकि उनका मानना होता है, कि टीम इंडिया की हार को देखने से बेहतर है की कोई अन्य कार्यक्रम ही देखा जाए.
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बिलकुल ऐसा ही 1990 के दशक में देखने को मिलता है. हालात एक दम मिलते जुलते ही हैं. तब टीम की पूरी उम्मीदे सचिन तेंदुलकर पर रहती थी और अब विराट कोहली पर रहती है. तब भी लोग सचिन के आउट होने के बाद मैच देखना बंद कर देते थे आज भी वही हालात है.