पिछले कुछ सालों से अजिंक्य रहाणे ने अपनी बल्लेबाजी में कमाल का सुधार किया हैं, और वे भारतीय टेस्ट टीम के अब सबसे बेहतरीन बल्लेबाज बन गये हैं.
इस सीजन भारतीय टीम कुल 13 टेस्ट मैच खेलने वाली हैं, जिसमे न्यूजीलैंड, इंग्लैंड, अॉस्ट्रेलिया और बांग्लादेश के खिलाफ मैच खेलेगी. इस सीजन भारतीय टीम अजिंक्य रहाणे के प्रदर्शन पर काफी निर्भर हैं.
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अजिंक्य रहाणे को पिछले कुछ सालों के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में शानदार प्रदर्शन की वजह से अर्जुन अवॉर्ड पुरस्कार भी मिला.
ये सब कामयाबी हासिल करने से पहले हर मुंबई के क्रिकेटर की तरह अजिंक्य रहाणे को भी काफी कुछ मुश्किलों का सामना करना पड़ा हैं. अजिंक्य रहाणे डोंबिवली में रहते थे, और क्रिकेट खेलने के लिए उन्हें लोकल ट्रेन से काफी घंटे सफर करना पड़ता था.
अजिंक्य रहाणे ने कहा, “ये ऐसा वे सिर्फ उसी वजह से कर पाए क्योंकि उनमे क्रिकेट को लेकर प्यार था.”
रहाणे ने कहा, “मेरे दिन की शुरूआत सुबह 5:30 बजे होती थी. फिर मैं डोंबिवली से सुबह 6 बजे ट्रेन पकड़ता था, और सीएसटी जाता था, और वहां से आजाद मैदान जाता था. मुझे वहां पहुंचने में 3 घंटे लग जाते थे. मैं सीएसटी स्टेशन से आजाद मैदान किट लेकर चलकर जाता था. मैं ये सिर्फ क्रिकेट से प्यार को लेकर करता था, लेकिन मैनें आगें क्या करना हैं ये कभी नहीं सोचा था. लेकिन देश के लिए खेलना मेरा सपना था.”
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उन्होंने आगें कहा, “जब मैं ट्रेन में जाता था, तो लोग मुझे बैठने के लिए जगह देते थे, और मेरी बैट पकड़ते थे. मुझे कभी कभी ट्रेन में नींद भी आती थी, और लोग मुझे उठाते थे, और कहते थे कि, तुम्हारा स्टेशन आ गया.
मैं उन सभीका शुक्रिया गुजार हूं, जिन्होंने मेरी काफी मदद की, और उन्हें मैं कभी नहीं भूल सकता.”
पहले अजिंक्य रहाणे के पिताजी मधुकर उन्हें हर रोज आजाद मैदान खेलने लेकर जाते थे, लेकिन एक दिन उन्होंने अजिंक्य से कहा कि, तुम खुद जाया करो, और वहां से रहाणे दिमागी तौर से काफी मजबूत बने.
रहाणे ने कहा, “पहले ट्रेन में लोग गाना गाते थे, और उसे सुनने में मुझे काफी अच्छा लगता था. मेरे पिताजी पहले कुछ दिन मेरे साथ आए, लेकिन उसके बाद मैं खुद मैदान पर जाने लगा, और मुझे इस वजह से खुद पर यकिन हुआ.
मेरे पिताजी ने एक बार मुझे डोंबिवली स्टेशन छोड़ा और कहा तुम अकेले जाओ. वे मेरे पिछे पिछे आए, कि मैं कैसे जाता हूं, और फिर वे मुझे सीएसटी छोड़कर अपने अॉफिस जाते थे.
अब बच्चों को अकेले नहीं भेजा जाता, लेकिन पहले ऐसा नहीं था, लेकिन मैनें तबसे लेकर अब तक काफी कुछ सीखा हैं.”
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रहाणे वैसे एक शांत खिलाड़ी हैं, लेकिन उन्होंने यहां तक पहुंचने के लिए काफी मेहनत किया है.
एक बार जब मैं 10 साल का था, तब एक गेंदबाज की गेंद मेरे हेलमेट पर लगी. उसने मुझे कहा, “तुम ड्रेसिंग रूम में जाकर बैठों ये तुम्हारा काम नहीं. लेकिन मैनें हार नहीं मानी और खेलता रहा. लेकिन अगर मैं तब नहीं खेलता तो आज मैं यहां नहीं होता.मैनें फिर उसी गेंदबाज को 5 गेंदों में 5 चौके लगाया.
एक बार पिटर सिडल ने मेरी हेलमेट पर गेंद मारी, मैं कुछ बोला नहीं. फिर लंच के बाद विराट कोहली ने मुझे कहा कि, आक्रमक खेलो, और मैनें वैसा ही किया, और तबसे मेरे में काफी बदलाव आया हैं, और अब मैं एक परिपक्व बल्लेबाज बन गया हूं.
विपक्षी गेंदबाज आपको भड़काते रहते हैं, लेकिन मैनें सिर्फ स्माईल दी, और बाद में वे आपको कुछ नहीं बोलते.”
उन्होंने कहा, “विराट कोहली सामने वाले खिलाड़ियों से बात करते हैं, लेकिन मैं शांत रहता हूं, मैनें विराट कोहली से काफी कुछ सीखा हैं.”
रहाणे ने कहा, “धोनी एक शांत कप्तान थे, तो कोहली आक्रमक हैं. और इन दोनों के बीच तुलना करना सहीं नहीं हैं.”
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आखिर में उन्होंने कहा, “राहुल द्रविड और सचिन तेंदुलकर मेरे आदर्श हैं. लोग मेरी तुलना उनसे करते हैं यहीं मेरे लिए बड़ी बात हैं. दोनों महान खिलाड़ी थे, और मुझे उनसे काफी कुछ सीखने को मिला.”