रिटायरमेंट कब लेनी है वो आपके ऊपर होता है लेकिन क्या इससे दुसरे लोग प्रभावित होते है. यही बात धोनी के आस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट सीरीज के बीच में से रिटायर लेने पर भारतीय क्रिकेट दर्शकों को सताती है.

इसके पिछे क्या कारण था ये पता नहीं, लेकिन हां धोनी को सीरीज के खत्म होने का इंतजार करना चाहिए था. उनको सीरीज के अंत में फैसला करना चाहिए था और ये जानना चाहिए था, कि क्या कोहली कप्तानी के लिए तैयार है.

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1962 में वेस्टइंडीज के दौरे पर चोट लगने की वजह से नरी कॉट्रेक्टर आखिरी टेस्ट में कप्तानी नहीं कर पाए थे और तब नवाब पतौदी कप्तान बने थे. और धोनी सिर्फ 33 के ही है और वो भारतीय टेस्ट टीम के लिए फिट है. धोनी का शरीर उनका साथ भी कब तक देगा और उनका कप्तानी रिकॉर्ड छोटे फॉरमेंट में टेस्ट से अच्छा है, लेकिन टेस्ट सबसे महत्वपूर्ण है.

कोहली ने जब धोनी पहले टेस्ट में नहीं थे तब शानदार कप्तानी की थी और शायद इस वजह से धोनी ने ये फैसला लिया हो, उन्होंने रिकॉर्ड की और भी नहीं देखा जोकि10 टेस्ट दूर थे अपने 100वे टेस्ट से, 114 रन दूर थे अपने 5000 टेस्ट रन से और विकेट पिछे 300 विकेट से सिर्फ 6 विकेट दूर थे.

उन्होंने टेस्ट से संन्यास लिया लेकिन उनको एक कप्तान के तौर पर नहीं तो एक खिलाडी के तौर पर खेलते रहना चाहिए था, जिससे कोहली को भी मैदान पर फायदा होता. जैसे सचिन और द्रविड धोनी के कप्तानी में खेले वैसे ही धोनी को भी कोहली के कप्तानी में खेलना चाहिए था. जैसे की पतौदी वाडेकर की कप्तानी में खेले, गावस्कर कपिल की कप्तानी में खेले और अजहर, सचिन की कप्तानी में खेले, और सचिन, गांगुली और द्रविड की कप्तानी में खेले. वैसे ही धोनी को कोहली के कप्तानी में खेलना चाहिए था जिससे कोहली को भी फायदा होता.

 

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SAGAR MHATRE

I am sagar an ardent fan of cricket. I want to become a cricket writer, i always suport virat kohli and ms dhoni in every international match, but not in ipl in ipl i always chear for mumbai indian and...