भारतीय क्रिकेट टीम में 17 साल की उम्र में डेब्यू करने वाले विकेटकीपर-बल्लेबाज पार्थिव पटेल को टीम इंडिया में डेब्यू का मौका पहले मिला था. मगर इसके बाद महेंद्र सिंह धोनी आए और शानदार विकेटकीपर और बल्लेबाजी से उन्होंने टीम में अपनी जगह पक्की कर ली. कई लोगों का मानना रहा है कि धोनी के युग में खेलने वाले विकेटकीपर बदकिस्मत थे. मगर पार्थिव पटेल खुद को धोनी के युग में खेलने के लिए बदकिस्मत नहीं मानते हैं.
धोनी के युग में खेलने के चलते दुर्भाग्यशाली नहीं
भारतीय क्रिकेट टीम के विकेटकीपर-बल्लेबाज महेंद्र सिंह धोनी ने 2004 में भारत के लिए डेब्यू किया और मिले हुए मौकों को अच्छी तरह से भुनाते हुए टीम में अपनी जगह पक्की कर ली. अब पार्थिव पटेल ने बताया है कि उनका धोनी के युग में खेलना दुर्भाग्यशाली नहीं था बल्कि उनके फॉर्म के चलते वह टीम से बाहर हुए. पार्थिव ने कहा,
धोनी इसलिए आए, क्योंकि वह अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रहे थे. मैंने कुछ सीरीज में अच्छा नहीं खेला था, जिसके बाद मुझे बाहर कर दिया गया था. बहुत से लोगों को मुझसे सहानुभूति हैं कि धोनी के युग में खेलने की वजह से मैं दुर्भाग्यशाली रहा हूं, लेकिन मेरा ऐसा मानना नहीं है.
धोनी ने मौके का सही इस्तेमाल किया और उन्होंने जो भी पाया, वह उसके हकदार हैं. उन्होंने देश के लिए बहुत कुछ किया है, जो काफी खास है. इसलिए मैं खुद को कतई दुर्भाग्यशाली नहीं मानता हूं.
एडम गिलक्रिस्ट-इयान हिली को देखकर हुआ बड़ा
विश्व क्रिकेट की बात करें तो जब भी विश्व के सर्वश्रेष्ठ विकेटकीपरों की बात होती है तो ज़हन में सबसे पहले ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट टीम के पूर्व दिग्गज विकेटकीपर-बल्ल्बेजा एडम गिलक्रिस्ट का नाम ध्यान में आता है. तो वहीं भारत में भी नयन मोंगिया, किरण मोरे को युवा खिलाड़ी अपना आदर्श मानकर विकेटकीपिंग किया करते थे. विकेटकीपरों पर बात करते हुए पटेल ने कहा,
मैं एडम गिलक्रिस्ट और इयान हिली को देखकर बड़ा हुआ हूं. भारतीय विकेटकीपरों की बात करें, तो किरण मोरे और नयन मोंगिया को देखकर मैंने सीखा है.
हमारे टाइम हर युवा विकेटकीपर नयन मोंगिया के स्टाइल को कॉपी करने की कोशिश करता था, लेकिन जो वो कर सकते थे, वैसा कोई नहीं कर सकता था. मेरे करियर में किरण सर (किरण मोरे) का बड़ा योगदान रहा है.
पार्थिव के बाद टीम में आए धोनी
भारतीय क्रिकेट टीम के विकेटकीपर-बल्लेबाज पार्थिवव पटेल को 17 साल की उम्र में ही भारत के लिए डेब्यू करने का मौका मिल गया था. उन्होंने 2002 में भारत की टेस्ट टीम में जगह बना ली थी और 2003 में उन्हें एकदिवसीय टीम का भी हिस्सा बना लिया गया.
मगर पार्थिव मिले हुए मौकों को अच्छी तरह भुना नहीं पा रहे थे. तभी झारखंड के महेंद्र सिंह धोनी को 2004 में टीम में खेलने का मौका मिला. इसके बाद तो माही ने जिस तरह उन मौकों को भुनाकर टीम में अपनी जगह पक्की कर ली.