क्रिकेट डेस्क। फुटबॉल के प्रति दीवानगी रखने वाले जर्मनी ने एक बार क्रिकेट में भी हाथ आजमाया था, और इसे बड़ी गर्व के साथ खेला था। मगर इतिहास और इसके शासक ने देश में खेल की दिशा को बदलकर रख दिया। विचारधारा में फर्क तथा सबसे महत्वपूर्ण विश्व युद्धों ने विश्व के सबसे लोकप्रिय खेल फुटबॉल और क्रिकेट की प्रगति को देखा है। विक्टोरिया के जमाने में क्रिकेट काफी मशहूर था और जर्मनी में भी इसकी लोकप्रियता बढ़ने लगी थी।
जर्मनी क्रिकेट की भूली-बिसरी कहानी को दो किताबों के जरिए दर्शाया गया है। डान वाडेल की ‘फील्ड ऑफ शैडोज‘ और बीबीसी वर्ल्ड अफेयर्स ब्रॉडकास्टर्स के जॉन सिम्पसंस द्वारा लिखी ‘अनरिलायबल सोर्स’ के जरिए जर्मनी क्रिकेट के बारे में खुलासा हुआ है।
1937 में वॉरसेस्टरशायर की टीम ने दोनों देशों में तनावों के बावजूद नाजी जर्मनी का दौरा किया। हिटलर के राज वाली नाजी जर्मनी ने टीम का भव्य स्वागत किया। टीम को नाजी जर्मनी की कार में ले जाया गया और उस समय हवा में स्वास्तिक वाले हवाई जहाज उड़ते दिखे।
जर्मन प्रेस ने इंग्लिश टीम के जर्मनी दौरे को विशेष कवरेज दिया। कुछ ने दौरे के कुछ अहम पहलुओं को बताया जिसमें ऐतिहासिक महत्व को भी बताया गया। डास फुब्बॉल मेगाफोन ने ‘विल्कोममैन वॉरसेस्टरशायर’ शीर्षक के साथ विशेष फीचर प्रकाशित किया।
डान वाडेल द्वारा लिखी किताब ने खुलासा किया है कि जर्मन क्रिकेट के बड़े प्रशंसक फ्लेक्सी मेनजेल ने किस तरह 12 खिलाडि़यों के समूह को बर्लिन में तीन मैच की सीरीज खेलने के लिए आमंत्रित किया था। इंग्लिश टीम को मेरीलिबोन क्रिकेट क्लब (एमसीसी) से निर्देश मिला था कि क्रिकेट कानून के संरक्षकों से सहन नहीं की जाएगी।
वॉरसेस्टरशायर टीम की कमान काउंटी क्रिकेट क्लब के कप्तान मॉरिस ज्वेल ने संभाली। इंग्लिश टीम ने बिलकुल भी निराश नहीं किया और वॉरसेस्टरशायर ने तीनों मैच जीते, जिसमें हिटलर के मशहूर ओलंपिक स्टेडियम में मैच जीतना शामिल था।
वॉरसेस्टरशायर का काम तब और आसान हो गया जब जर्मनी ने अपने सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी एलबर्ट शमिड्ट को यहूदी होने के कारण खेलने की इजाजत नहीं दी। शमिड्ट ने मैच में अंपायर की भूमिका निभाई। अफसोस की बात है कि बाद में उन्हें ऑसच्विट्ज में मार दिया गया।
वाडेल ने कहा था कि यह टीम फुर्सतिया खिलाडि़यों की बनी है। इस देश में उन्हें खेलना अनजान लगा क्योंकि यहां नाजी की पकड़ थी। उन्होंने कहा, ‘इंग्लिश खिलाडि़यों का अच्छा स्वागत किया गया और उन्हें उस समय उच्च ब्यूरॉक्रेटिक तथा बंद देश के फ्री पास दिए गए। खिलाडि़यों को नाजी कार में यात्रा कराई गई और वह जहां चाहे उन्हें जाने की इजाजत मिली थी।
जर्मन नागरिकों में क्रिकेट में जूनुन देखने के बावजूद इंग्लिश टीम को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। वाडेल ने कहा, ‘इंग्लिश टीम ने मेहमाननवाजी का लुत्फ उठाया, लेकिन यह कहना गलत नहीं होगा कि उन्हें 1937 में जर्मनी अनजान जगह लगी। लेखक को लंबे शोध के बाद एक आर्टिकल का टुकड़ा मिला, जिसमें खिलाड़ी ने बर्लिन में गुजारी रात का उल्लेख किया है। एक रात उन्टेर डेन लिनडेन में टीम ने मशाल लेते जाते लोगों का जूलुस देखा। यह बर्लिन का प्रमुख रास्ता था। हजारों समूहों ने मशाल थाम रखी थी और वह धीमे-धीमे जा रहे थे। एक क्रिकेटर ने इसे भयानक पल करार दिया।
उन्होंने साथ ही कहा कि उनके कई क्रिकेट मैच बंदूक चलने वाले बैकग्राउंड की आवाज के बीच खेले गए। इससे पता चलता है कि उस समय जर्मनी कैसा था। किसी ने बंदूक चलती नहीं देखी, लेकिन आवाजों से ध्यान जरूर भटका।
टीम ने हिटलर को बदनाम नाजी सैल्यूट किया। वाडेल ने खुलासा किया कि किस कारण उन्हें किताब लिखने की प्रेरणा मिली। उन्होंने बताया कि 1984 में लेखक जॉर्ज ऑरवेल ने एक आर्टिकल ने उन्हें शोध करने के लिए प्रेरित किया।
क्रिकेट उस समय इंग्लैंड में इतना लोकप्रिय नहीं था जितना जर्मनी में था। मिस ब्लांडिश ऑरवेल ने एक पत्र लिखकर कहा, ‘असल में इंग्लैंड में क्रिकेट इतना मशहूर नहीं था और वह फुटबॉल जितना बिलकुल भी लोकप्रिय नहीं था। मगर इंग्लिश कैरेक्टर के हिसाब से फॉर्म और स्टाइल शब्द सफलता से ही कही ज्यादा मायने रखने वाले शब्द बने।
पूरे देश की धारणा बन गई कि अच्छा फॉर्म, खेल खेलना और अन्य के कारण क्रिकेट को पहचाना जाने लगा। नाजी भी क्रिकेट को हतोत्साहित नहीं करना चाहते थे, जिसे पिछले युद्ध के बाद जर्मनी में थोड़ी लोकप्रियता मिलने लगी थी।
वाडेल ने साथ ही पाया कि जर्मनी में क्रिकेट तब तक बहुत लोकप्रिय था जब तक नाजी ने बागडोर न संभाल ली। उनके दौरे के दौरान जर्मनी के बर्लिन में 12 टीमों से घटकर चार रह गई थी। वाडेल ने ऑरवेल द्वारा लिखा एक आर्टिकल पढ़ा जिसका शीर्षक था- जर्मन क्रिकेट : ए ब्रीफ हिस्ट्री। इसमें वॉरसेस्टरशायर के साहसिक कार्यों का विश्लेषण किया गया था। उन्होंने कहा, – नाजी के सत्ता में आने से पहले क्रिकेट जर्मनी में बहुत लोकप्रिय था। मगर वह उससे नफरत करते थे।
वेहरमाच्ट (आर्मी) को ट्रेनिंग देने के लिए क्रिकेट का इस्तेमाल करने का जर्मन फुहरर का असफल प्रयास
जॉन सिम्पसन ने अपनी किताब अनरियालबल सोर्स में बताया है कि एडोल्फ हिटलर भी एक समय क्रिकेट से प्यार करते थे। हिटलर से सहानूभुति रखने वाले ब्रिटीश राइट विंग एमपी ऑलिवर लॉकर लैंपसन ने एक रिपोर्ट लिखी जो 1930 में डेली मेल में प्रकाशित हुई। इसमें खुलासा हुआ : नाजी के उदय के समय रिचस्टैग द फुहरर का मानना था कि युद्ध की तैयारी करने के लिए क्रिकेट उपयुक्त था।
लॉकर लैंपसन ने अपने आर्टिक में लिखा- हिटलर की इच्छा क्रिकेट को पढ़ने की थी क्योंकि वह इसे आर्मी समूह की ऑफ ड्यूटी समय वाली ट्रेनिंग और शांत रखने का जरिया मानते थे। इस आर्टिकल का शीर्षक था- एडोल्फ हिटलर एज आई नो हिम।
यह कहानी 30 सितंबर 1930 में प्रकाशित हुई जिसमें फुहरर की क्रिकेट से निर्णायक मुठभेड़ बताई।
टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक तत्काली जर्मन आर्मी के लांस कोरपोरल हिटलर तब नजदीकी अस्पताल में घावों से उबर रहे थे। लॉकर लैंपसन ने कहा, ‘हिटलर उनके पास आए और पूछा कि वह खेलते हुए 11 खिलाडि़यों को देख सकते हैं ताकि हमारे राष्ट्रीय खेल के रहस्य को समझने की पहल कर सके। उन्होंने इसका स्वागत किया और खेल के प्रति प्यार को देखते हुए नियम लिखकर दिए। हिटलर ने इसके बाद दोस्ताना मैच खेला जहां वो शून्य पर आउट हुए और उनकी टीम हार गई।
मैच के तुरंत बाद हिटलर ने फैसला दिया कि जर्मन फासिस्टों के लिए क्रिकेट अपर्याप्त हिंसक खेल है। लॉकर लैंपसन ने फिर लिखा- उन्होंने क्रिकेट के कानूनों की ठगा जो वह मानते हैं कि लविंग इंग्लिश नागरिकों के साथ सही रहा।
तब से क्रिकेट इस राज्य में नहीं खेला गया जब तक हिटलर का शासन खत्म नहीं हुआ और आधुनिक जर्मनी ने 21वीं शताब्दी में खेल के प्रति प्यार दिखाया। यह 25वां वर्ष है जब डीसीबी आईसीसी का सदस्य बना हो।
मगर क्रिकेट की लोकप्रियता उस ऊचाई को नहीं छू सकी जैसे पहले हुआ करती थी। यह जर्मन नागरिकों के लिए अल्प खेल बनकर रह गया है। अब उनकी रगों में सिर्फ फुटबॉल दौड़ता है।
हालांकि क्रिकेट विश्व में उतना लोकप्रिय नहीं है और न ही जर्मनी में। और हिटलर ने मैच खेला या नहीं इसकी पुष्टि नहीं हुई है। किताब में खुलासा किया है कि उन्होंने खेला जिसका शीर्षक रहा : अनरिलायबल सोर्स (अविश्वसनीय सूत्र)। और तो और हिटलर ने कई लोगों को मौत के घाट उतारा, लेकिन उनमें से क्रिकेटर्स नहीं थे।