भारतीय क्रिकेट की सबसे बड़ी संस्था भारतीय क्रिकेट कन्ट्रोल बोर्ड यानि बीसीसीआई एक सबसे पुरानी संस्था में से एक है। बीसीसीआई की नींव पड़ने के बाद बीसीसीआई के अंडर में सबसे ज्यादा काम करने वाले कर्मचारी की बात करें तो कई लोग है। इन्हीं में से एक ऐसे कर्मचारी भी हैं जिसने बीसीसीआई में सालों से अपनी सेवाएं दी और आखिरकार शुक्रवार को उन्होंने सन्यास की घोषणा कर दी।
बीसीसीआई से सबसे लंबे समय से जुड़े कर्मचारी सीताराम तांबे ने लिया रिटायरमेंट
बीसीसीआई के कार्यालय में सालों से कर्मचारी के रूप में काम करने वाले सीताराम तांबे हैं जिन्होंने एक लंबे समय तक काम करने के बाद शुक्रवार को बीसीसीआई को अलविदा कह दिया। मुंबई के सीताराम तांबे ने जब से सचिन तेंदुलकर ने इंटरनेशनल क्रिकेट में कदम रखा उसके बाद से बीसीसीआई में काम कर रहे हैं। इसके बाद वो सचिन के पूरे इंटरनेशनल करियर के दौरान बीसीसीआई से जुड़े रहे और 25 से भी ज्यादा सालों तक बीसीसीआई में अपनी सेवाएं दी। इस तरह से सीताराम तांबे बीसीसीआई में ऐसे कर्मचारी हो गए हैं जो सबसे ज्यादा सालों तक जुड़े रहे।
The BCCI would like to thank Mr Jayant Zaveri, Mr B Laxman, Mr Sitaram Tambe and Dr Vece Paes for their invaluable contribution to the organisation and wish them a joyous retirement. pic.twitter.com/8nENnFB81M
— BCCI (@BCCI) December 29, 2017
सीताराम तांबे के किया गया सम्मानित
सीताराम तांबे को शुक्रवार को बीसीसीआई ने एक प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया। सीताराम तांबे के सम्मान में मुंबई के ब्रेबॉर्न स्टेडियम में कार्यक्रम का आयोजन किया गया जहां पर इनका सम्मान किया गया। सीताराम तांबे को सभी प्यार से तांबे मामा के नाम से पुकारते थे।
सचिन के पिता के हाथों से मिला था ऑफऱ लेटर
सीताराम तांबे ने सचिन तेंदुलकर के पूरे इंटरनेशनल करियर के दौरान बीसीसीआई में अपनी सेवाएं दी। सीताराम तांबे ने बीसीसीआई को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि “मुझे इससे खुशी हुई कि इसका ऑफर लेटर सचिन तेंदुलकर के पिता के द्वारा उनके घर से मिला। जब वो अपने 24 साल के लंबे करियर के बाद रिटायर हुए। तो उसके बाद एक बार फिर से उनके घर में उनका ऑटोग्राफ लेने के लिए गया। जब मैं उनके घर पर पहली बार गया था तो वो नाबालिक थे और जब मैं अगली बार गया तो वो विश्व के एक महान बन गए थे।”
रणजी ट्रॉफी के पिछले सीजन में घटी थी ये घटना
सीताराम तांबे का काम टेलीग्राम और पत्रों को एक-दूसरे के पास पहुंचाने का काम था।लेकिन तकनीकी के इस दौर में इनका काम और आसान सा बन गया। इसको लेकर सीताराम तांबे ने कहा कि “मैं पिछले साल जब रणजी ट्रॉफी के फाइनल मैच में इंदौर गया था जब मैंने रणजी ट्रॉफी उनसे ली तो वो बीच रास्ते में टूट गई थी और वो 15 किलों से कम हो गई थी। चालक को मैंने सौंपी तो वो इसको संभाल नहीं सके और वो हमनें गुजरात को जीतने के बाद दी।”