भारत में जैसे क्रिकेट की पूजा की जाती है। इस देश ने क्रिकेट को कई महान खिलाड़ी दिए हैं, जिनमें सचिन तेंदुलकर, कपिल देव, राहुल द्रविड़ जैसे नाम शामिल किये जाते हैं। जैसे-जैसे देश की जनसँख्या बढ़ रही है, वैसे-वैसे खिलाड़ियों के लिए नेशनल टीम में जगह बनाना और भी ज्यादा मुश्किल होता जा रहा है।
नेशनल टीम तो दूर की बात, डोमेस्टिक क्रिकेट में भी अब क्रिकेटरों के लिए जगह बनाना मुश्किल होता जा रहा है। इस आर्टिकल के माध्यम से हम इसी सम्बन्ध में चर्चा करने जा रहे हैं। जिन्होंने रणजी ट्रॉफी में टीम की कप्तानी कर अपनी-अपनी टीमों को चैंपियन भी बनाया लेकिन नेशनल टीम में जगह बनाने में विफ़ल रहे।
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देवेन्द्र बुंदेला
इसी साल मार्च में उन्होंने क्रिकेट से संन्यास की घोषणा कर दी थी। उन्होंने रणजी ट्रॉफी में मध्य प्रदेश को तीन बार अपनी कप्तानी में क्वार्टरफाइनल तक और एक बार सेमीफाइनल तक भी पहुँचाया था।
देवेन्द्र, रणजी ट्रॉफी के इतिहास में 9201 रन के साथ, सबसे ज्यादा रन बनाने के मामले में तीसरे स्थान पर हैं। अपने लम्बे करियर में उन्होंने मध्य प्रदेश के लिए खेलते हुए 24 शतक जड़े। लेकिन ये रिकॉर्ड उन्हें कभी भारतीय टीम में जगह नहीं दिला पाए।
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मिथुन मन्हास
कई प्रतिभाओं के मालिक, उन्होंने बल्लेबाजी में तो रणजी के कई रिकॉर्ड ध्वस्त किये ही। आपको बता दें कि वो बॉलिंग के साथ-साथ विकेट कीपिंग भी कर सकते हैं। अपने रणजी करियर में उन्होंने साढ़े आठ हज़ार से ज्यादा रन बनाये और रणजी ट्रॉफी के इतिहास में सबसे ज्यादा रन बनाने के मामले में चौथे स्थान पर हैं।
फ़िलहाल वो आईपीएल फ्रैंचाइज़ी, किंग्स इलेवन पंजाब के सहायक कोच की भूमिका में नज़र आते हैं। वो एक आदर्श मिडिल ऑर्डर बल्लेबाज हैं, लेकिन सौरव गांगुली, सचिन तेंदुलकर के दौर में उनका जन्म हुआ, जो कि उन्हें राष्ट्रीय टीम में कभी जगह नहीं दिला सका।
पंकज धर्माणी
हालाँकि उन्होंने 1996 में भारतीय टीम में जगह मिली थी। साउथ-अफ्रीका के खिलाफ़ उस एकमात्र एकदिवसीय मैच में वो केवल आठ ही रन बना पाए थे। उन्हें महान, उनके रिकॉर्ड बनाते हैं। फर्स्ट-क्लास करियर में उन्होंने पचास की औसत के साथ 9312 रन बनाये।
वो पूरे पांच साल तक पंजाब रणजी क्रिकेट टीम के कप्तान रहे। 2009 में उन्होंने पंजाब की कमान संभाली और इन पांच सालों के दौरान उन्होंने पंजाब को दो बार सेमीफाइनल और एक बार क्वार्टरफाइनल तक की राह तय कराई।
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