अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद ने हाल ही में लंदन में हुई मीटिंग में फ्रंट फुट नो बॉल के लिए टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल के लिए मंजूरी दे दी है। इसके तहत रिप्ले का उपयोग तुरंत उस स्थान के लिए किया जाएगा, जहां एक गेंदबाज ने ओवरस्टेप किया हो या नहीं, तीसरे अंपायर के साथ लगातार प्रत्येक डिलीवरी पर कड़ी नजर बनी रहेगी।
बीसीसआई करेगी नो बॉल चेक करने वाली तकनीक का इस्तेमाल
कथित तौर पर यह निर्णय बीसीसीआई के अनुरोध के बाद लिया गया है और भारत में पहली बार घरेलू सत्र के दौरान इसका परीक्षण किया जाएगा और इसे देश में आयोजित होने वाले अंतरराष्ट्रीय मैचों में आगे इस्तेमाल किया जा सकता है।
आईसीसी के एक अधिकारी ने मीडिया को बताया, “आईसीसी इसका ट्रायल करेगी और कुछ ट्रायल भारत में भी होंगे।”
आईपीएल में आरसीबी-एमआई के बीच छिड़ा था नो बॉल विवाद
इस साल की शुरुआत में इंडियन प्रीमियर लीग के दौरान फ्रंट-फ़ुट नो-बॉल पर विवाद छिड़ गया था। मुंबई इंडियंस व रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर के बीच एक लीग मैच के दौरान, ऑन-फील्ड अंपायर, लसिथ मलिंगा को यह बताने में असफल रहे थे कि मैच का अंतिम बॉल क्या थी और अंपायर का यह फैसला निर्णायक साबित हुआ।
मलिंगा ने गेंद फेंकी और दुबे ने लॉन्ग ऑन पर शॉट खेला। बैंगलोर के बल्लेबाजों ने रन नहीं दौड़ा, लेकिन रीप्ले में देखा गया कि मलिंगा के पैर क्रीज से आगे बढ़ा हुआ था।
यानी वह एक नो-बॉल थी लेकिन अंपायर ने इसे नोटिस नहीं किया। बैंगलोर के कप्तान विराट कोहली इस पर बुरी तरह भड़क गए। मैच के बाद उन्होंने कहा कि यह आईपीएल है न कि कोई क्लब क्रिकेट।
तकनीक को लागू करने से होगा यह फायदा
आईसीसी ने इस टेक्नोलॉजी का उपयोग करने में संकोच किया है इसका कारण उच्च लागत शामिल है जो कथित तौर पर एक दिन के लिए कई हजार डॉलर में चलता है। यह बहुत ज्यादा माना जाता था क्योंकि नो-बॉल केवल 0.5 प्रतिशत डिलीवरी करते हैं।
यदि इस तकनीक को लागू किया जाता है, तो तीसरे अंपायर लगातार प्रत्येक डिलीवरी पर अपनी नजर रखते हुए एक खेल में शामिल होगा। जिस पल कोई गेंदबाज ओवरस्टेप करता है, उस फैसले को ऑन-फील्ड अंपायर के पास भेज दिया जाएगा।