जब दिल और दिमाग पर छाया वनडे के दोहरे शतक का जादू 1

क्रिकेट डेस्‍क। वनडे क्रिकेट में दुनिया ने 40 साल तक दोहरे शतक का इंतजार किया और उनका इंतजार 2010 में पूरा हुआ जब क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर ने दुनिया के पहला दोहरा शतक लगाया। उनके इस कारनामे के बाद यह असंभव चीज संभव लगने लगी। हुआ भी कुछ ऐसा ही डेढ़ साल बाद एक और भारतीय बल्‍लेबाज ने इस कारनामे को दोहरा दिया और उनका नाम था वीरेंद्र सहवाग। वो हमेशा से ही सचिन के नक्शेकदम पर चलना चाहते थे और उन्‍होंने वैसा करके भी दिखाया।

वनडे क्रिकेट में दोहरा शतक लगाना कोई मजाक नहीं हैं। लेकिन इसकी उम्‍मीद पहले से सहवाग से की जाती रही थी क्‍योंकि वह जिस स्‍ट्राइक रेट के साथ बल्‍लेबाजी करते थे चाहे वह क्रिकेट का कोई भी फॉर्मेट हो उनका इस लक्ष्‍य को पाना संभव सा लगता था। अगर उन्‍होंने किसी लक्ष्‍य के बारे में एक बार ठान लिया तो समझो हासिल कर लिया। ऐसा ही कुछ उस समय हुआ जब उन्‍होंने अपना दोहरा शतक मात्र 140 गेंद में लगाया और अपने नाम 219 रन का दुनिया का सर्वाधिक स्‍कोर का रिकॉर्ड कर लिया। वह भारत की ओर से टेस्‍ट और वनडे दोनों में सर्वाधिक स्‍कोर बनाने वाले बल्‍लेबाज की रूप में पहचाने गए। इसके बाद वनडे में इस रिकॉर्ड को रोहित शर्मा ने अपने नाम कर लिया।

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वीरू ने जिस प्रकार से अपने नाम इतने सारे मील के पत्‍थर लगने वाले रिकॉर्ड दर्ज कराए यह उनकी बल्‍लेबाजी की वजह से नहीं बल्कि उनका खेलने के प्रति जो रवैया था उसके कारण हुआ। दोहरा शतक लगाने वाले मैच के ठीक पहले वाले मैच में वीरू अपना खाता भी नहीं खोल सके थे और शून्‍य पर आउट होकर पवेलियन लौट गए थे। वह जानते थे उनकी फॉर्म के कारण पूरी टीम पर दवाब आता है और इसका ही परिणाम अगले मैच में देखने को मिल गया। हालांकि वीरू के दोहरे शतक के बाद और भी दोहरे शतक बने लेकिन पहले दो हमारी यादों और दिलों में हमेशा रहेंगे।

reyansh chaturvedi

A cricket enthusiast who has the passion to write for the sport. An ardent fan of the Indian Cricket Team. Strongly believe in following your passion and living in the present.