बीते कुछ मैचों में भारतीय टीम का प्रदर्शन देख कर ऐसा लगता है कि विराट कोहली के कप्तानी कौशल का दम फ़ूलने लगा है. विपक्षी टीमों के सामने आत्मसर्पण की स्थिति में नज़र आ रही भारतीय टीम की परफ़ॉर्मेंस के गिरते ग्राफ़ के लिए कप्तान की भूमिका पर सवाल उठना लाज़िमी है. अपनी 3 साल की कप्तानी में कहीं न कहीं वो समय आ गया है कि विराट को कप्तान के तौर पर अपनी भूमिका का एक बार आकलन कर लेना चाहिए. ये सवाल उस समय में उठ रहे हैं जब भारतीय टीम को लगातार हार का ही सामना करना पड़ रहा है.
लगातार हार से उठ रहे सवाल
विराट सीमित ओवरों के खेल में 2017 से भारतीय टीम की कमान संभाले हुए हैं. विराट की कप्तानी के इस फ़ेज़ में भारतीय टीम ने कई मैच जीते हैं और कुछ बेहतरीन रिकॉर्ड्स भी अपने नाम किए हैं. लेकिन पिछले कुछ समय से टीम के प्रदर्शन और विराट के कप्तान कौशल के ढीले पड़ने के बाद टीम को लगातार हार का सामना करना पड़ रहा है.
भारतीय टीम की शिकस्त का ये सिलसिला न्यूज़ीलैंड दौरे के बाद से लगातार जारी है. न्यूज़ीलैंड के हैमिल्टन से शुरु हुआ ये हार का सिलसिला सिडनी तक भी जारी है. इस सिलसिले के अलावा बीते साल ऑस्ट्रेलिया के ही खिलाफ़ टीम को लगातार 3 मैच में हार का मुँह देखना पड़ा था. इससे पहले कि विराट पर अंगुलियां उठने लगे, उन्हें खुद एक बार ज़ेहनी तौर पर अपनी कप्तानी स्किल्स का मुआयना कर लेना चाहिए.
जीत की बजाए हार में बन रहा रिकॉर्ड
वन-डे में भारतीय टीम की एक सीज़न में लगातार हार के सिलसिसे पर बात करें तो इसके लिए हमें पिछले 46 सालों में भारतीय टीम की वन-डे में परफ़ॉर्मेंस का आकलन करना होगा. टीम का एक क्रम से सबसे ज़्यादा मैच हारने का रिकॉर्ड पूर्व कप्तान सुनील गावस्कर की कप्तानी के नाम दर्ज है. हार का ये निराशाजनक सिलसिला भी ऑस्ट्रेलिया के ही खिलाफ़ सिडनी से शुरु हुआ था.
इस वाकये से थोड़ा और आगे बढ़ें तो बात आती है 1989 में लगातार 7 मैच में मिली हार की, जब टीम का नेतृत्व कर रहे थे कृष्णमाचारी श्रीकांत और दिलीप वेंगसरकर, ये पाँचवीं बार है कि किसी एक सीज़न में भारतीय टीम को लगातार 5 मैचों में हार का सामना करना पड़ा है, और इस दफ़ा टीम के कप्तान हैं विराट कोहली.
कप्तान जो देख चुके हैं लगातार इतनी हार
विराट ही इकलौते ऐसे कप्तान नहीं है जिनके नाम लगातार हार का ये रिकॉर्ड दर्ज है, बल्कि उनसे पहले भी कई दिग्गज कप्तान इस दौर से गुज़र चुके हैं. एक सत्र में लगातार हार के इस सिलसिले की शुरुआत होती है 1978 से जब दिग्गज स्पिनर बिशन सिंह बेदी और वेंकटारघमन की संयुक्त कप्तानी में भारतीय टीम को लगातार 5 मैचों में हार ही मिली थी.
इसके बाद 1983 में विश्व-कप विजेता कप्तान कपिल देव की कप्तानी में भी टीम लगातार 5 मैचों में जीत हासिल नहीं कर सकी. चैंपियन ऑफ़ चैंपियन्स का तमगा हासिल कर चुके पूर्व कप्तान रवि शास्त्री भी 1988 लगातार हार का ये कड़वा स्वाद चख चुके हैं, उनके बाद 2002 में सौरव गांगुली, 2005 में राहुल द्रविड़ भी 5 मैचों में लगातार हार के इस कड़वे अनुभव से अछूते न रह सके.
अब इस पूरे विमर्श के निष्कर्ष पर भी थोड़ी रोशनी डाली जाए, तो बात ये निकल कर सामने आती है कि विराट को एक बार अपने ऐग्रैशन को एक ओर रख के ठंडे दिमाग से अपनी कप्तानी और टीम के प्रदर्शन में सुधार लाने के लिए आगे की रूपरेखा पर विचार करना होगा. इससे पहले कि विराट का कप्तानी कौशल टीम के लिए अप्रासंगिक हो जाए और क्रिकेट प्रशंसक उन्हें कप्तान के तौर पर नकारने लगे, विराट को अपने अंदर ज़रूर झाँकना होगा.