भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व धुरंधर बल्लेबाज वीरेंद्र सहवाग ने कहा कि मेरी तूफानी बल्लेबाजी किसी शौक या गेंदबाजों में खौफ पैदा करने के लिए नहीं थी  बल्कि एक मजबूरी की उपज थी। और उसी मजबूरी को मैंने अपनी मजबूती में बदला। फिर वह एक स्टाइल बन गई।

सहवाग ने बताया कि उनका परिवार दिल्ली से दूर नजफ़गढ़ में रहता था और उस समय सहवाग की उम्र कुछ 9-10 साल की होगी| सहवाग अपने दोस्तों के साथ आस पास के गांव में क्रिकेट खेलने जाया करते थे| सहवाग को उस समय 6वें नंबर पर बल्लेबाजी करने के लिए भेजा जाता था| और उन्हें 10 से 12 गेंद ही खेलने को मिल पाता था| कम समय में टारगेट बड़ा होता था और उस समय प्रत्येक गेंद कीमती थी इस लिए गेंद को हिट करने के अलावा और कोई चारा नहीं था| और यही स्टाइल मैंने घरेलू मैचों में भी अपनाई| और वहाँ सफल हुआ तो अंतराष्ट्रीय क्रिकेट में मौका मिला| और तब तक यह आदत बन चुकी थी|

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उन्होंने कहा कि मैं आज भी अनिल कुंबले को एक बेहतरीन कप्तान मानता हूं। उन्होंने कहा, कि 2007 में मेरी करीब 8 टेस्ट पारियों में कोई अर्धशतक नहीं था| इसलिए मेरे को एक साल के लिए टीम से बाहर कर दिया गया था|

आस्ट्रेलिया टूर के लिए जब अनिल कुंबले कप्तान बने। उन्होंने चयनकर्ताओं से कहा कि मुझे वीरू चाहिए| उस समय एक चयनकर्ता भूपिंदर सिंह भी थे| मेरा चयन हुआ तब मैंने भूपिंदर पाजी से कहा भी था कि मेरी पिछली कुछ पारियों को देखते हुए मेरा चयन नहीं होना चाहिए थ| लेकिन कुंबले को भरोसा था। फिर नजफगढ़ के चंद गेंदों की चुनौती वाले दिनों को याद किया और वहां मैंने 151 रनों की शानदार  पारी खेली|

वीरेंद्र सहवाग ने कहा, कि वो देश भर में दुसर सहवाग ढूँढने निकले हैं लेकिन उन्हें अभी तक कोई दूसरा सहवाग नहीं मिला है| सहवाग ने बताया कि उनके पिता का सपना था कि एक ऐसा स्कूल हो जिसमें एजुकेशन के साथ-साथ खेल सुविधाएं भी मौजूद हों। पिता के इस सपने को साकार करने के लिए मैंने हरियाणा के झज्जर में सहवाग इंटरनेशन स्कूल स्थापित किया है। इसमें उच्च स्तर की पढ़ाई के साथ-साथ खेल की सभी सुविधाएं भी दी जाती हैं|

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