इंग्लैंड में दादा पर एक युवक ने तान दी थी बन्दूक, फिर एक लड़की ने किया कुछ ऐसा बच गयी थी जान 1

कैप्टन कूल कहे जाने वाले टीम इंडिया के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी से पहले भारतीय टीम के पास एक एग्रेसिव कप्तान भी था. जिसने टीम इंडिया को विपक्ष पर आक्रामक करना सिखाया. उसने सिखाया की क्रिकेट के मैदान पर दहाड़े कैसे मारते हैं.

आज उस खिलाड़ी जा जन्मदिन है. जी हाँ, हम बात कर रहे है प्रिंस ऑफ कोलकाता कहे जाने वाले सौरव गांगुली की. जो आज यानी रविवार को अपना 46वां बर्थडे मना रहे हैं.

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दादा ने जब भारतीय टीम की कमान संभाली थी तो उन दिनों टीम इंडिया बैक फूट पर खेलना पसंद करती थी. बैक फूट यानी मैच जीतने के लिए नहीं बल्कि मैच बचाने के लिए. फिर दादा ने सिखाया मैच कैसे जीता जाता है जो आज भारतीय टीम की आदत बन चुकी है.

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8 जुलाई 1972 को कोलकाता में जन्में सौरव ने 20 साल की उम्र में अंतरराष्ट्रीय डेब्यू कर लिया था. गांगुली की बल्लेबाजी की खासियत थी कि वह ऑफ साइड पर आसानी से शॉट लगा देते थे.

उनकी इस हुनर से प्रभावित होकर एक बार उनके साथी खिलाड़ी राहुल द्रविड़ ने कहा था, ‘अगर ऑफ साइड का कोई भगवान होता, तो उन्हें गांगुली कहा जाता.’ स्पिनरों पर जिस तरह से दादा लम्बे लम्बे छक्कें लगाते थे, इसी वजह से उन्हें सिक्सर किंग कहा जाता था. दादा ने क्रिकेट के बारे में इतने मुकाम हासिल किये हैं जिसके बारे में यहां लिख पाना संभव नहीं है.

दादा के इंग्लैंड में लॉर्ड्स में टी-शर्ट लहराने वाला किस्सा तो अपने खूब सुना होगा, लेकिन आज हम उनके बर्थडे पर आपको एक अनकहा किस्सा बताने जा रहे हैं. वह किस्सा जिसमें दादा के जान पर बन आया था.

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दरअसल, यह बात साल 1996 की है, भारतीय टीम इंग्लैंड दौरे पर गई थी. तीन मैचों की टेस्ट सीरीज का दूसरा मैच लंदन में खेला गया. वैसे तो यह मैच ड्रा रहा था मगर सौरव गांगुली के लिए यादगार बन गया. यह दादा का डेब्यू टेस्ट था और पहले ही मैच में उन्होंने शतक लगाकर इतिहास रच दिया.

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मैच खत्म होते ही गांगुली अपने साथी खिलाड़ी नवजोत सिंह सिद्धू के साथ इंग्लैंड घूमने निकल पड़े. ये दोनों भारतीय खिलाड़ी एक अंडरग्राउंड ट्रेन में बैठकर कहीं जा रहे थे. अभी आधे रास्ते ही पहुंचे थे कि गांगुली के सामने वाली सीट पर दो लड़के और तीन लड़कियां बैठकर शराब पी रहे थे.

दादा ने इस घटना का जिक्र Beefy’s Cricket Tales किताब में किया है. गांगुली आगे लिखते हैं कि, ‘शराब पी रहे टीनएजर्स ने हमारे साथी बदतमीजी की. उनमें से एक लड़के ने हमारे ऊपर बियर केन फेंका. उसे लगा कि मैं कुछ रिएक्ट करूंगा, लेकिन मैंने उस बियर केन को उठाया और किनारे रख दिया. मैं किसी भी विवाद में नहीं पड़ना चाहता था. मैंने सिद्धू से कहा चलो इन्हें यहीं छोड़ दो हम दूसरे कंपार्टमेंट में चलते हैं. मेरा इतना कहना हुआ कि एक लड़का भड़क गया और कहने लगा कि ‘मैंने अभी क्या बोला?’

इस तरह बचाई थी जान
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उन्होंने किताब में आगे लिखा, ‘उन लड़कों के साथ हमारी बहस तेज हो गई थी और सिद्धू भी लड़ाई करने के लिए तैयार हो गए. तब मुझे लगा कि कुछ गड़बड़ होने वाली है. मैंने बिना कुछ सोचे-समझे अपना चश्मा उतारा और उन लड़कों को धक्का देकर जमीन पर गिरा दिया. ये लड़ाई बढ़ने ही वाली थी कि तब तक स्टेशन आ गया. मैं जल्दी से बाहर की तरफ भाग ही रहा था कि देखा कि एक लड़के ने मेरे ऊपर बंदूक तान दी. उस वक्त मुझे लगा कि आज इस ट्रेन में मेरी जिदंगी यहीं खत्म हो जाएगी.’

खैर गांगुली को उस दिन लड़कों के साथ आई एक लड़की का शुक्रिया अदा करना चाहिए जिसने उनकी जान बचाई. गांगुली लिखते हैं, ‘उस ग्रुप में एक मोटी लड़की थी, जिसने हाथ में बंदूक लिए लड़के को तेजी से अपनी ओर खींचा और उसे ट्रेन से उतारक ले गई.’