भारत-साउथ अफ्रीका की सीरीज चल रही है और मीडिया में हर तरफ इस सीरीज की चर्चाए हो रही है। इसी बीच भारत की ब्लाइंड क्रिकेट टीम ने भी ब्लाइंड क्रिकेट विश्व कप में पाकिस्तान को हराकर विश्व कप जीता। ब्लाइंड क्रिकेट टीम ने विश्व कप के फाइनल मुकाबले में शारजाह स्टेडियम में पाकिस्तान को हराकर वर्ल्ड कप जीता।
पिछले 2-3 साल में भारत का नाम किया रोशन
भारत की इस ब्लाइंड क्रिकेट टीम में भी जीतने का उतना ही जुनून है जितना की धोनी और कोहली में है। इस बात का सबूत इस रिकॉर्ड को देखकर लग सकता है। बीते 51 महीनों में भारत की ब्लाइंड क्रिकेट टीम ने 2 वनडे वर्ल्ड कप, 2 टी-20 वर्ल्ड कप, एक एशिया कप और 4 दिपीक्षीय सीरीज जीते हैं, जिससे पता चलता है कि ये टीम में भी किसी से कम नहीं है।
इस टीम ने भारत को इतनी पहचान दिलाई लेकिन फिर भी जब ये विश्वकप जीतकर भारत लौटे तो एयरपोर्ट में इनके स्वागत के लिए इनके परिवार वालों को छोड़कर वहां कोई भी ज्यादा लोग नहीं थे। इससे पता चलता है कि इनकी वेल्यू हमारे देश में कितनी कम आंकी जा रही है।
खेती-मजदूरी ही रोजगार का साधन
इतना ही नहीं इस टीम के कई खिलाड़ियों के पास घर चलाने तक के पैसे नहीं है और फिर भी किसी का ध्यान इनकी तरफ नहीं जाता है। इस टीम के 12 खिलाड़ियों के पास स्थाई रोजगार तक नहीं है। इनमें से तीन दक्षिण गुजरात के हैं जो बड़ी मुश्किल से अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं।
इस टीम के गणेश महुड़कर के पास कोई रोजगार नहीं है। उनको गुजरात सरकार ने नौकरी देने का वादा किया था लेकिन उन्हें नौकरी भी नहीं मिली। उनके पिता मजदूरी करके अपना घर-परिवार चला रहें हैं।
दूध बांटकर चलता है परिवार
अनिल आर्य की कहानी भी इसी तरह है। वो भी एक बेहद गरीब परिवार से हैं और दूध बेचकर किसी तरह उनका परिवार पालन-पोशन कर रहा है। उनके पिता खेत में मजदूरी करते हैं और वो खुद दूध बांटकर पैसे कमाते हैं। जब वो खेलने जाते हैं तो किसी और को दूध बांटने का जिम्मा सौंप के जाते हैं।
कुछ इसी तरह की कहानी लगभग सभी खिलाड़ियों की हैं लेकिन इसकी तरफ बीसीसीआई से लेकर सरकार तक किसी का ध्यान नहीं जाता। जब ये भारत का नाम रोशन करते हैं, तो थोड़ी देर तक टीवी में खबर और अखबारों में एक हेडलाइन आ जाती है और उसके अलावा कुछ भी नहीं होता।