ओलम्पिक में जाने वाली झारखण्ड की पहली महिला हॉकी खिलाड़ी बनीं निक्की 1

निक्की प्रधान को 2011-2012 जूनियर राष्ट्रीय हॉकी शिविर के लिए नहीं चुना गया था और इसके बाद उन्हें अपने भविष्य को लेकर कोई अंदाजा नहीं था। लेकिन अपनी कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प की बदौलत उन्होंने रियो ओलम्पिक के लिए चुनी गई भारतीय महिला हॉकी टीम में जगह बनाई। अगले महीने ब्राजीलियाई महानगर रियो डी जनेरियो में शुरू होने वाले ओलम्पिक खेलों के लिए मंगलवार को भारतीय महिला हॉकी टीम की घोषणा कर दी गई, जिसमें निक्की भी शामिल हैं।

अपने गांव से ही हॉकी खेलना शुरू करने वाली निक्की ने 2005 में रांची में आयोजित प्रशिक्षण शिविर में पहली बार हिस्सा लिया। इसके बाद वह पिछले साल पहली बार राष्ट्रीय टीम में जगह बनाने में सफल रहीं।

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अब पृथक राज्य बन चुके झारखंड से पांच ओलम्पिक खिलाड़ी निकले हैं जिनमें जयपाल सिंह मुंडा (एम्सटर्डम 1928), मिशेल किंडो (म्यूनिख 1972), सिल्वानुस डुंगडुंग (मास्को 1980), मनोहर टोप्पनो (लास एंजेलिस 1984) और अजीत लाकड़ा (बार्सिलोना 1992) शामिल हैं।

हालांकि निक्की विश्व के सबसे बड़े खेल आयोजन में हिस्सा लेने वाली इस राज्य की पहली महिला हॉकी खिलाड़ी हैं।

राज्य के मुख्यमंत्री रघुबर दास ने निक्की को बधाई देते हुए कहा कि यह झारखंड के लिए गर्व की बात है।

राज्य सरकार के खेल मंत्री अमर बाउरी ने कहा कि निक्की की यह उपलब्धि राज्य के अन्य खिलाड़ियों को प्रोत्साहन देगी।

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झारखंड हॉकी के अध्यक्ष भोलानाथ सिंह ने कहा कि लंबे समय बाद राज्य हॉकी को लेकर चर्चा में है।

भोलानाथ ने कहा, “यह गर्व की बात है और हॉकी झारखंड (एचजे) हॉकी की बेहतरी के लिए समर्पित है।”

पूर्व राष्ट्रीय चयनकर्ता और पूर्व अंतर्राष्ट्रीय महिला हॉकी खिलाड़ी सावित्री पुत्री ने भी निक्की को बधाई दी।

निक्की के बचपन के कोच दशरथ महतो ने कहा कि वह पहले खेलने से काफी डरती थीं। वह काफी पतली थीं जिसके कारण उन्हें लगता था कि हॉकी से उनके पांव में चोट लग जाएगी। हालांकि कोच उन्हें हिम्मत देते रहते थे और अंतत: उन्होंने हॉकी उठाने का फैसला किया।

निक्की कुंती जिले में मुरहु ब्लॉक के छोटे से गांव हेसेल की रहने वाली हैं। दुर्भाग्यवश उनके गांव के लोग उनकी इस उपलब्धि से तब तक अनभिज्ञ थे जब तक मीडिया ने इस बारे में खबरें प्रसारित नहीं कर दीं।

उनके पिता सोमा प्रधान बिहार पुलिस में कार्यरत हैं और उनकी मां गृहिणी हैं।

इन सब में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि राज्य सरकार खिलाड़ियों को तमाम सुविधा देने वाली बड़ी-बड़ी बातें करती है, लेकिन ओलम्पिक के लिए चुनी गई यह खिलाड़ी अभी भी मिट्टी के बने छोटे से घर में रहती है जिसमें शौचालय और स्नानघर में ठीक-ठाक दरवाजा तक नहीं है।