बीच खेल में पानी की बोतले फेंक देने और थोड़ी देर तक मैच में व्यवधान पैदा हो जाने वाली घटना को अपने देश की दुनिया भर में नाक कटाने जैसा कह कह कर स्वांग रचा जा रहा है और विडम्बना देखिये कि यह किसी अन्य देश की करतूत नहीं बल्कि हमारे ही देश के लोगो द्वारा है।
बोतलें फेंकना निस्संदेह गलत है। ऐसा हमेशा होता भी नहीं। हम गलत हमेशा दर्शको को साबित करते रहते हैं। हमेशा दर्शकों की मीन-मेख निकालते रहते हैं, किन्तु ऐसी स्थिति का जन्म होता कैसे है? इसे हमेशा से नजर अंदाज रखा जाता है और दर्शकों को उधमी मान कर कार्यवाही की जाती है।
देखिये हार दो प्रकार की होती है। एक वो जो सिर्फ हार ही हो , दूसरी वह जिसमे संघर्ष के बाद हार हो। दूसरे प्रकार की हार हमेशा पचाई जाने वाली तथा उसे स्वीकार की जाने वाली होती है, किन्तु पहले प्रकार की हार को किसी भी तरह से पचा पाना कठिन होता है। ठीक है, खेल में हार -जीत होती रहती है। सिर्फ हार और जीत देखने के लिए ही दर्शक न तो अपना धन व्यय करते हैं, न समय और न ही अपनी भावनाएं। वो खेल देखने , ऐसा खेल देखने जिसमे रोमांच हो, आनंद हो और संघर्ष हो, अधिक चाहते हैं।
प्रोफेशनलिज्म में कोई भी खेल दर्शकों की इस भावना को नज़रअंदाज नहीं करता। न खेल, खिलाड़ी और न ही उस खेल का संगठन। क्रिकेट बहुत बड़ा बाज़ार है। यह खेल तो है किन्तु खेल के माध्यम से दर्शको की भावनाओ का इसमे सौदा होता है। खासतौर पर भारत जैसे देश में। मेरा व्यक्तिगत मानना है कि क्रिकेट जब इतना अधिक सर चढ़ कर बोलता है तो कुछ तो खिलाड़ियों का फर्ज भी बन जाता है कि वो इसे हलके में न लें। संगठनों का भी दायत्व है कि वो इसमे रोमांच पैदा करने का हरदम प्रयास करें।
आप पारदर्शी और ईमानदाराना मैच करवाने के पक्षधर तो हैं, यह होना भी चाहिए, किन्तु इसका अर्थ यह कतई नहीं होता कि आप दर्शको की उम्मीदों, उनके धन-समय और रोमांच के अर्थ को खो दें और अपनी मनमानी करते रहें। इस बात को क्यों नहीं अपने क्रिकेट संविधान में शामिल किया जाता कि दर्शकों का पैसा न बिगड़े, उनका वक्त जाया न हो उन्हें कम से कम अच्छा खेल तो देखने को मिले। अगर ऐसा नहीं होता तो उनकी प्रतिक्रिया के लिए वो मजबूर हो जाते हैं। जैसे खेल में हार और जीत तो होती रहती जैसा जुमला व्यक्त करने में संचालक और दर्शकों की निंदा करने वाले स्वतन्त्र है।
यह निर्विवाद रूप से सच है कि कटक में जो कुछ भी हुआ वो गलत हुआ। उसका पक्ष नहीं लिया जा सकता, किन्तु यह भी उतना ही सच है कि दर्शक सिर्फ नीरस क्रिकेट देखने तो नहीं आये थे, और न कभी आते हैं। क्रिकेट इतिहास में ऐसा कई बार हुआ है कि टीम सस्ते में आउट हो गई और मैच बिल्कुल एक तरफा हो कर हार में तब्दील हो गया। ठीक है, खेल के लिए ऐसा होना वाजिब है, किन्तु प्रत्येक खेल के संग, उसके खिलाड़ियों के संग, टीमों के संग दर्शकों, उसके प्रशंसकों में एक ऐसी भावनाएं होती हैं, एक ऐसा उत्साह -जोश और उम्मीदें होती हैं, जिसे वे व्यक्त करना चाहते हैं। व्यक्त कर खुद रिलीज हो जाना चाहते हैं। ऐसा होना भी उतना ही वाजिब है जितना कि खेल में हार और जीत।
दर्शक अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करना चाहते हैं और कभी कभी ही वे उत्तेजित होते हैं। उत्तेजित होकर हानि पहुंचाने जैसा व्यवहार कभी माफ़ नहीं किया जा सकता, किन्तु आयोजकों को यह सोचना भी होगा कि जिनके जोश-उम्मीदों और खेल के प्रति आकर्षण की बदौलत उनका इतना बड़ा क्रिकेट चल रहा है, उनके लिए सोचना, उनकी दशा का ध्यान रखना भी ठीक ठीक उतना ही आवश्यक है जितना कि वे अपने खेल व अपने खिलाड़ियों के बारे में सोचते हैं। ऐसे में आप कटक के दर्शको को उपद्रवी घोषित करके उन्हें सजा तो दिलवा सकते हैं किन्तु खुद के दायित्वों से भी दूर भागने जैसा अधर्म भी करते हैं।
खेल में हार और जीत ही होनी है, ये साधारण सा व्यक्ति भी जानता है, किन्तु कैसी हार और कैसी जीत? इसका एक मायना होता है। 92 रनों पर आउट हो जाना और बिलकुल बच्चों जैसा खेल कर हार जाना,और फिर इसका कोई अफसोस भी नहीं, साथ ही चहरे पर कोई ऐसे भाव भी नहीं जो पराजय के बाद होने चाहिए, चाहे तो नाटक ही कर लिया जाता, किन्तु ऐसे प्रोफेशनल हो जाना दर्शको की भावनाओं के साथ मजाक है, क्योंकि दर्शकों की भावनाएं प्रोफेशनल नहीं होती। वे तो उनकी अपनी और सदैव सच्ची होती है, इसलिए दर्शको की गलती मानते हुए, उन्हें यह कहते हुए कि उनकी वजह से देश की नाक कटी है, बेमानी है। नाक तो उस हार से अधिक कटी जो धोनी एंड टीम द्वारा खेल कर प्राप्त हुई है। क्या इसे आप भुलाये रखना चाहेंगे? या महज दर्शकों की हरकत पर देश की नाक कटने जैसी बातें कहते हुए खुद ही दुनियाभर में ऐसा प्रचारित कर देंगे?
कटक में दर्शकों की गलती है। ऐसा होना सचमुच शर्मनाक है। ऐसा भविष्य में कभी हो ही न सके इसके लिए दर्शकों पर पाबंदियां अवश्य लगाई जाएंगी, किन्तु क्या अपने खेल और खिलाड़ियों को तैयार किया जाएगा कि वे जो खेल अपने देश के नाम पर खेल रहे हैं, वो इतना नीरस और ऐसी शर्मनाक पराजय वाला तो न हो जिसमें संघर्ष का रत्तीभर भी प्रदर्शन दिखाई न पड़े, उल्टे लापरवाह और मुंह चिढ़ाते खेल-खिलाड़ी और उनकी हेकड़ी ही दिखाई दे। इस बारे में भी सोचना लाजमी है।