क्रिकेट के इतिहास में कई ऐसे खिलाड़ी हुए हैं जिन्होंने अपनी बल्लेबाजी से इतिहास रच दिया है। ऐसा ही कुछ एक खिलाड़ी ने रणजी ट्रॉफी (Ranji Trophy) टूर्नामेंट में कर दिखाया जिसकी शायद किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी। इस खिलाड़ी ने धमाकेदार बल्लेबाजी करते हुए रणजी (Ranji Trophy) में 443 रनों की पारी खेली थी। आज बात उस खिलाड़ी की करने जा रहे हैं जिन्होंने गेंदबाजों के छक्के छुड़ाते हुए 443 रनों की पारी खेली।
Ranji इतिहास में गेंदबाजों
के छक्के छुड़ाने वाले खिलाड़ी

इस खिलाड़ी ने Ranji में रचा था इतिहास
हम यहां जिस खिलाड़ी की बात कर रहे हैं उसका नाम भाऊसाहेब निंबालकर है। भाऊसाहेब निंबालकर ने रणजी ट्रॉफी(Ranji Trophy) में 443 रन बनाए थे, यह एक अविश्वसनीय उपलब्धि है। यह कारनामा उन्होंने 1948-49 के सीज़न में महाराष्ट्र और काठियावाड़ के बीच पुणे के क्लब ग्राउंड पर खेले गए मैच में किया था। उनकी यह नाबाद 443 रनों की पारी रणजी ट्रॉफी (Ranji Trophy) के इतिहास में किसी भी बल्लेबाज द्वारा बनाया गया सर्वोच्च व्यक्तिगत स्कोर है।
उस समय, यह प्रथम श्रेणी क्रिकेट के इतिहास में दूसरा सबसे बड़ा व्यक्तिगत स्कोर था, केवल सर डॉन ब्रैडमैन के 452 रनों से पीछे। आज भी, यह प्रथम श्रेणी क्रिकेट में चौथा सबसे बड़ा व्यक्तिगत स्कोर है और किसी भी ऐसे बल्लेबाज द्वारा बनाया गया सर्वोच्च स्कोर है जिसने कभी टेस्ट क्रिकेट नहीं खेला। उनकी इस ऐतिहासिक पारी में 49 चौके और 1 छक्का शामिल था और उन्होंने क्रीज पर 1006 मिनट बिताए थे। महाराष्ट्र ने उस मैच में 826/4 के स्कोर पर पारी घोषित की और काठियावाड़ को एक पारी और 404 रनों से हराया था।
भाऊसाहेब निंबालकर का क्रिकेट करियर
भाऊसाहेब निंबालकर ने 19 साल की उम्र में 1939-40 सीज़न में बड़ौदा के लिए खेलते हुए रणजी ट्रॉफी में पदार्पण किया। उन्होंने अपने करियर में मुख्य रूप से महाराष्ट्र के लिए खेला (1941-42 से 1950-51)। इसके अलावा, उन्होंने बड़ौदा, होल्कर, मध्य भारत, राजस्थान और रेलवे का भी प्रतिनिधित्व किया। वह दाएं हाथ के बल्लेबाज थे और कभी-कभी विकेटकीपिंग भी करते थे। वह दाएं हाथ के मध्यम गति के तेज गेंदबाज भी थे।
प्रथम श्रेणी क्रिकेट में बनाए इतने रन
उन्होंने 80 प्रथम श्रेणी मैचों में 47.93 की औसत से 4841 रन बनाए, जिसमें 12 शतक और 22 अर्धशतक शामिल थे। उन्होंने 58 विकेट भी लिए। प्रभावशाली घरेलू रिकॉर्ड के बावजूद, उन्हें कभी भी भारतीय टेस्ट टीम में खेलने का मौका नहीं मिला। उन्हें 1952-53 में इंडियन क्रिकेटर ऑफ द ईयर चुना गया और 2002 में बीसीसीआई द्वारा सी. के. नायडू लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया।
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