अपने करियर के शुरुआती स्पेल में ही इंग्लैंड के टॉप ऑडर को धाराशाई करने वाले आकाश दीप (Akash Deep) का क्रिकेटिंग सफर काफी संघर्ष भरा रहा है। भारतीय टीम (Team India) तक पहुंचने के सफर में आकाश दीप (Akash Deep) ने कभी हिम्मत नहीं खोई आखिरकार उन्होंने सफलता हासिल कर ही ली। 6 महीने के अंदर पिता और भाई के मौत के बाद घर की जिम्मेदारी भी आकाश के कंधो पर आ गई थी।
आकाश के मृत भाई की दो बेटिंया भी है जिसकी जिम्मेदारी आकाश दीप (Akash Deep) ही उठा रहे हैं। इन सब मुश्किल हालातों का सामना करते हुए आकाश ने क्रिकेट खेलना जारी रखा। पड़ोसियों के ताने और पिता के द्वारा मिले डांट को हथियार बनाकर आकाश दीप ने इनस्विंग स्टॉक डिलिवरी में महारत हासिल करते हुए क्रिकेट में नाम कमाने की ओर एक कदम आगे बढ़ा दिया है।
पड़ोसियों के ताने को बनाया हथियार
आकाश दीप (Akash Deep) मुलरुप से बिहार के सासाराम जिले से आते हैं। झारखंड के 2000 में अलग होने से बिहार क्रिकेट एसोशिएसन को BCCI से मान्यता नहीं मिली थी। जिस समय आकाश क्रिकेट में अपना करियर बनाना चाहते थे।
उस वक्त भी BCA को मान्यता नहीं मिला था, ऐसे में आकाश दीप (Akash Deep) जब स्कूल और आस-पास में लोगों से कहते थे कि उन्हें क्रिकेट में अपना करियर बनाना है तब हर कोई उनके इस बात बर हंसते थे कोई उनकी बात को सीरियस नहीं लेता था, लेकिन आकाश इन सब बातों की परवाह किए बगैर अपने लक्ष्य की ओर ध्यान केंद्रित भारतीय टीम तक का मुकाम हासिल कर लिया।
आकाश दीप (Akash Deep) ने कहा- जब में लोगों से क्रिकेट में करियर बनाने की बात करता था तब लोग ताने मारते थे, मेरी बात पर हंसते थे। “मैं उनलोगों को बुरा या गलत नहीं मानता था। शायद वह अपनी जगह पर सही भी थे, क्योंकि बिहार वह भी सासाराम जैसे छोटी सी जगह जहां क्रिकेट को लेकर कोई भी बात नहीं करता था वहां पर क्रिकेट में करियर बनाने की बात करना लोगों के लिए किसी पागलपन से कम नहीं है।”
क्रिकेटर बनने के लिए एग्जाम में होते थे फैल
आकाश दीप (Akash Deep) के पिता चाहते थे कि वह राज्य सरकार की ग्रुप डी नौकरियों की तैयारी करे, ताकि उसका भविष्य सुरक्षित हो सके, लेकिन आकाश क्रिकेट के प्रति जुनूनी बने रहे। आकाश क्रिकेट के प्रति इतने पागल थे कि वह क्रिकेट से दूर नहीं होने के लिए नौकरी की परीक्षाओं में पेपर खाली छोड़कर चले आते थे। आकाश ने मीडिया से कहा- “मेरे पिता बिहार पुलिस की कॉन्स्टेबल भर्ती परीक्षाओं के फ़ॉर्म भरते और मैं परीक्षा में पेपर ब्लैंक छोड़ कर ही वापस आ जाया करता था।”