Gambhir : इंडिया और इंग्लैंड के बीच चल रही 5 मैचों की टेस्ट सीरीज के चौथे मुकाबले से पहले ही भारतीय क्रिकेट टीम मुश्किलों के सागर में डूबी नजर आ रही है। बता दे मैनचेस्टर के ओल्ड ट्रैफर्ड मैदान पर 23 जुलाई से होने वाले मुकाबले से पहले न केवल खिलाड़ियों की चोटें बल्कि खराब टीम चयन, रणनीतिक असंतुलन और खिलाड़ियों की फॉर्म इंडिया के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है। लेकिन इन तमाम समस्याओं के पीछे जो सबसे बड़ा और अनदेखा कारण है, वह है गौतम गंभीर की टेस्ट कोचिंग।
टेस्ट की कोचिंग पद से कोच गंभीर को देना चाहिए अब इस्तीफा
दरअसल, टेस्ट क्रिकेट जैसे रणनीति और धैर्य-आधारित फॉर्मेट में कोच की भूमिका केवल प्रैक्टिस करवाने तक सीमित नहीं होती, बल्कि टीम संयोजन, मनोबल निर्माण और परिस्थितियों के हिसाब से योजना बनाना भी उसमें शामिल होता है। लेकिन दुर्भाग्यवश, इन सभी पहलुओं में गौतम गंभीर अब तक बुरी तरह विफल रहे हैं।
अब जब भारत 5 मैचों की सीरीज में 1-2 से पिछड़ चुका है और चौथा टेस्ट करो या मरो की स्थिति में है, तो यह सवाल और तीखा हो जाता है — क्या गंभीर को टेस्ट कोच पद से इस्तीफा नहीं दे देना चाहिए? आइये एक एक पहलू को विस्तार में समझते है।
खराब टीम चयन और खिलाड़ियों के साथ प्रयोग ने बिगाड़ा संतुलन
बता दे गौतम गंभीर के कोचिंग कार्यकाल में सबसे अधिक आलोचना जिस बात की हुई है, वह है निरंतर प्रयोग और बार-बार टीम संयोजन में बदलाव। याद दिला दे लॉर्ड्स टेस्ट में करुण नायर को लगातार मौका देना, जबकि वह फॉर्म में नहीं थे, यशस्वी जायसवाल को बिना तकनीकी सुधार के हर बार उतारना — ये सभी फैसले साफ तौर पर टीम को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
साथ ही, चोटिल खिलाड़ियों की जगह चयन में गंभीरता नहीं दिखाई गई। वहीं अर्शदीप सिंह और आकाशदीप के बाहर होने के बाद भी पेस अटैक को मजबूत करने के लिए कोई अनुभवी विकल्प नहीं चुना गया। लिहाज़ा यह सब कोच के खराब प्लानिंग और गैर-जिम्मेदार रणनीति का नतीजा है।
गंभीर का निराशाजनक कोचिंग रिकॉर्ड
साथ ही बता दे गंभीर का बतौर टेस्ट कोच प्रदर्शन अब तक पूरी तरह निराशाजनक रहा है। उनके कार्यकाल में इंडिया ने कुल 11 टेस्ट मैच खेले हैं, जिनमें से सिर्फ 3 में जीत मिली, जबकि 7 में करारी हार और 1 ड्रॉ रहा। उनका जीत प्रतिशत महज 27.27% है, जो भारत जैसी मजबूत टेस्ट टीम के लिए बेहद शर्मनाक है।
याद दिला दे न्यूजीलैंड के खिलाफ घरेलू क्लीन स्वीप की हार, बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी में एकतरफा मुकाबले और अब इंग्लैंड दौरे पर लगातार पिछड़ना – यह साफ इशारा करता है कि गौतम गंभीर की रणनीति टेस्ट क्रिकेट के लिए न तो कारगर है और न ही स्थिर।
दबाव में निर्णय लेने में असफलता
वहीं टेस्ट क्रिकेट में जब टीम दबाव में होती है, तब कोच की असली परीक्षा होती है। लेकिन गौतम गंभीर की रणनीतियों में मैच दर मैच घबराहट और असमंजस साफ दिखता है। बता दे ऋषभ पंत के फिट न होने के बावजूद उन्हें तीसरे टेस्ट तक होल्ड करना, जबकि ध्रुव जुरेल जैसे युवा विकेटकीपर को पहले से तैयार नहीं करना – ये सब गलतियों की श्रृंखला हैं।
साथ ही पिच और मौसम के अनुसार टीम कॉम्बिनेशन में बदलाव करने में भी वह पूरी तरह असफल रहे हैं। और तो और इंग्लैंड के उछाल और स्विंग देने वाली पिचों पर स्पिनर्स पर अधिक भरोसा करना, और कमजोर बल्लेबाजों को ऊपर भेजना — यह सब रणनीतिक विफलता का उदाहरण है।
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